एक साल में लीजिए चार फसल
रायपुर। स्टीविया यानि मीठी तुलसी की फसल में ना कीट प्रकोप होता है, ना रासायनिक खाद की जरूरत होती है। मजे की बात यह कि मार्च और दिसंबर को छोड़कर किसी भी महीने में इसकी बोनी की जा सकती है। यह जानकर हैरत ही होगी कि हर 3 माह बाद, फसल काटी जा सकती है। इस फसल का नाम है “स्टीविया”। जिसे सेक्रीन बनाने वाली यूनिटें हाथों- हाथ ले रही हैं।
कम उपलब्धता जैसी स्थितियों के बाद, महंगी दर पर उर्वरक और बढ़ते कीट प्रकोप पर नियंत्रण के लिए बेतहाशा रकम खर्च कर रहे किसानों के लिए खुशखबरी। स्टीविया इन दोनों परेशानी को दूर करने की खबर लेकर आ पहुंचा है। फसल का पहला खर्च, कुछ ज्यादा जरूर लग सकता है, लेकिन तैयार फसल की जो कीमत हाथों में आएगी, उसे देखकर किसान का उत्साह जरूर बढ़ेगा। फसल प्रबंधन में भी अन्य की तुलना में दिक्कत काफी कम है।
ना उर्वरक ना कीट प्रकोप
स्टीविया शायद ऐसी एकमात्र फसल होगी जिसे रासायनिक उर्वरक की जरूरत नहीं होती। मात्र गोबर खाद के सहारे बढ़वार लेने वाली स्टीविया में किसी भी किस्म के कीट प्रकोप नहीं होते। उर्वरक और कीटनाशक पर बेतहाशा खर्च करने से बचने के बाद किसान की बड़ी रकम बचाई जा सकती है। इसलिए भी खेती की ओर रुझान बढ़ते क्रम पर है।
साल में 4 बार कटाई
मार्च और दिसंबर को छोड़कर पूरे 10 माह स्टीविया की बोनी की जा सकती है। हर 3 माह में फसल तैयार हो जाती है। यानी 1 साल में 4 बार स्टीविया की तैयार फसल, काटी जा सकती है। मेड़ के अलावा खेत में भी इसके पौधे कलम के रूप में लगाए जा सकते हैं। किसान के पास फसल के साथ पौधा बेचने का भी विकल्प होता है। फिलहाल बाजार दर 120 से 125 रुपए प्रति पौधा है।
यह है स्टीविया के गुण
शक्कर से 30 गुना ज्यादा मीठा होने के बाद भी, यह शुगर फ्री होता है। कैलोरी रहित होने से इससे बनने वाले उत्पादन रक्तचाप, मधुमेह, मसूड़े की बीमारी से ग्रसित मरीजों के लिए सही माने गए हैं। एंटीबैक्टीरियल तत्व होने से यह त्वचा रोग को भी दूर करने में सक्षम है।
बड़े खरीददार
स्टीविया की फसल मुख्यतः सैक्रीन बनाने वाली इकाइयां खरीदतीं हैं। इसके अलावा शुगर- फ्री खाद्य एवं पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनियां भी स्टीविया के बड़े खरीददार हैं। औषधि निर्माण कंपनियां भी स्टीविया की खरीदी करती है। यानी फसल लगाने वाले किसान के सामने बाजार की उपलब्धता परेशानी नहीं है।
प्रदेश में स्टीविया की खेती की संभावनाएं हैं लेकिन किसानों को तकनीकी जानकारी नहीं होने के कारण वह इसकी खेती की ओर रुचि नहीं ले रहे हैं।
- डॉ. एसएस टुटेजा, प्रमुख वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाहकार, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन एनटीएफपी मैप्स, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ रायपुर