कम लागत और पर्यावरण संरक्षक
बिलासपुर। सिंचाई और कीट प्रकोप सबसे कम। जैविक या रासायनिक खाद तो जरा भी नहीं। यही गुण बांस की खेती का रकबा साल-दर-साल बढ़ा रहा है, साथ ही बढ़ रहा है उपयोग और बढ़ रही है प्रति बांस कीमत।
सही माना जाता है मार्च का महीना बांस की बोनी के लिए। दोमट मिट्टी वाली भूमि में बेहतर परिणाम देने वाला बांस बदलते जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसे क्षेत्र के किसानों के बीच अपनी जगह बना रहा है, जो कमजोर सिंचाई साधन के बीच खेती कर रहें हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बांस अल्प सिंचाई में भी तैयार हो जाता है।

अहम है यह गुण
अल्प सिंचाई। जरूरत नहीं रासायनिक या जैविक खाद का छिड़काव। इतना ही नहीं, बांस की फसल में कीट प्रकोप भी नहीं होता। जलवायु परिवर्तन के दौर में बांस की खेती उन किसानों के लिए बेहद लाभदायक होगी, जो ऐसी समस्या का सामना कर रहे हैं। नदी तट पर खेती कर रहे किसानों के लिए तो बांस वरदान से कम नहीं क्योंकि बांस, भूमि कटाव को मजबूती से रोकता है।

दोहरा लाभ ऐसे
बांस की पत्तियां से ग्रीन टी का बनाया जाना संभव है, तो इसकी मदद से आदिवासी अंचलों में व्यंजन भी बनाए जाते हैं। दोहरे लाभ की इस सूची में अदरक, हल्दी और सफेद मूसली का नाम भी दर्ज हो चुका है क्योंकि इन तीनों की फसल, बांस की फसल के बीच की खाली जगह पर ली जा सकती है। बताते चलें कि यह तीनों अपने औषधीय गुणों की वजह से भी जाने जाते हैं।

पर्यावरणीय योगदान
उम्र 32 से 48 वर्ष। अपने जीवन काल में बांस के वृक्ष मिट्टी कटाव तो रोकते ही हैं, मिट्टी का संरक्षण भी करते हैं। इसके अलावा इसे पर्यावरण के लिए सही माना जाता है क्योंकि यह वायुमंडल में 66% से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और ऑक्सीजन का उत्सर्जन बढ़ाता है। यह गुण वातावरण को प्राकृतिक तौर पर शुध्द रखने में मदद करता है जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

इसलिए कहते हैं हरा सोना
1 हेक्टेयर रकबा में 625 पौधों का रोपण सही माना गया है। पांचवें बरस 3125 पौधे तैयार हो जाते हैं। आठवें बरस तक यह संख्या 6250 तक होना पाया गया है। इस तरह तैयार बांस निर्माण क्षेत्र के अलावा औद्योगिक उपयोगकर्ता तक आकर्षक और लाभदायक राशि की अपेक्षा के साथ किसान पहुंच सकते हैं। ऐसे में लाभदायक खेती माना बांस को।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से दोहरा लाभ
“बांस की खेती, खासकर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से प्रभावित क्षेत्रों में, एक स्थायी और कम लागत वाली कृषि विधि साबित हो सकती है। बांस की उच्च वृद्धि दर और कम जल और खाद की आवश्यकता इसे उन किसानों के लिए आदर्श बनाती है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद लाभकारी खेती करना चाहते हैं। इसके अलावा, बांस का पर्यावरणीय योगदान जैसे कार्बन अवशोषण और भूमि संरक्षण, इसे आने वाले दशकों में एक अहम कृषि विकल्प बनाए रखेगा।”
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर