ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला अनाज, धीरे-धीरे पचकर शरीर को देती है ताकत
सतीश अग्रवाल
बिलासपुर। सांवा के बीज 1100 से 1200 रुपए क्विंटल। खरपतवार की इस प्रजाति के बीज ने अपनी पहली आवक में ही जो कीमत अपने नाम की है उसने ‘घुरवे के दिन भी बहुरते हैं’ कहावत को प्रमाणित कर दिया है क्योंकि अब तक इसे कचरे के ढेर में ही फेंका जाता रहा है।
अब परेशान नहीं, खुश करेगा ‘सांवा क्योंकि अनुसंधान में इसकी भी खेती किया जाना संभव पाया गया है। मांग, कीमत और रुझान देखने के लिए सीमित मात्रा में पहुंचा सांवा को 1100 से 1200 रुपए क्विंटल का भाव मिलना भविष्य में इसकी भी खेती की राह खोलता नजर आ रहा है क्योंकि उपयोग क्षेत्र इसका भी विस्तार ले रहा है।

इसलिए कचरा नहीं
मोटा अनाज की श्रेणी में सांवा को ”लिटिल मिलेट’ के ग्रेड में रखा गया है। अनुसंधान में सांवा के चावल में भरपूर फाइबर, ग्लूटेन- फ्री, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस का होना प्रमाणित हुआ है। सेवन से वजन घटाने में मदद मिलती है और ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने की वजह से मधुमेह रोगियों के लिए वरदान साबित होगा। इन औषधिय गुणों की पहचान ने सांवा की खेती की राह आसान कर दी है।

उपयोग इस रूप में
सांवा बीज के चावल से खिचड़ी और खीर बनाया जा सकता है। आटा से दोसा और उपमा बनाए जाने की शुरुआत फास्ट फूड सेंटर और स्ट्रीट फूड काउंटर में होने लगी है। यह भले ही धीमी शुरुआत हो लेकिन उपभोक्ताओं का रुझान बढ़ते क्रम पर है। धार्मिक आयोजनों में भी सांवा को जैसी जगह मिल रही है, उससे इसकी स्वीकार्यता को विस्तार मिल रहा है।

पहली आवक यहां
कृषि उपज मंडी भाटापारा। पहचान ऐसी मंडी के रूप में जहां कृषि उपज की उच्चतम कीमत मिलती है। यहां पहुंचे सांवा बीज की मात्रा भले ही उल्लेखनीय नहीं हो लेकिन जो कीमत बोली गई, उसने खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में कारोबारी गतिविधियों को नया रूप देने के लिए प्रेरित तो किया ही, साथ ही सांवा की खेती की राह भी आसान कर दी।

डायबिटीज रोगियों के लिए गुणकारी
सांवा खाने से ब्लड शुगर नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यह लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला अनाज है, इसलिए धीरे-धीरे पचकर शरीर को एनर्जी देता है। इसमें आयरन की मात्रा काफी होती है, जिससे आयरन की कमी के चलते होने वाले रोग एनीमिया में यह राहत दे सकता है। सांवा के चावल में सोडियम की मात्रा नहीं होती है। ऐसे में शरीर का ब्लड सरकुलेशन सामान्य रखने में मदद मिलती है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर