बढ़ाएंगे जलधारण क्षमता और मिट्टी की गुणवत्ता



बिलासपुर। वेस्ट वुड, पत्तियाँ, फसल अवशेष और गोबर। यह चार घटक मिलकर बनाएंगे ‘बायोचार’। यही बायोचार, मिट्टी की गुणवत्ता सुधारेंगे और बढ़ाएंगे जलधारण क्षमता। सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम की जा सकेगी। जिस पर आज सबसे ज्यादा खर्च कर रहा है किसान।

रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का अनियंत्रित छिड़काव का असर अब मिट्टी की खराब होगी सेहत के रूप में देखा जाने लगा है। विविध प्रकार के कीट प्रकोप और तेजी से खत्म होती नमी इसका स्पष्ट प्रमाण है। ऐसे में सदियों पुरानी बायोचार की विधि को फिर से अपनाने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों ने दी है। साथ में बनाने की विधि भी किसानों से साझा करते हुए कहा है कि बनाएं और छिड़काव करें। परिणाम स्वस्थ मिट्टी और बेहतर फसल के रूप में निश्चित ही देखा जाएगा।

यह है बायोचार

लकड़ियाँ, फसल अवशेष, पत्तियाँ और गोबर। इन चार घटकों की  जरूरत होती है बायोचार के निर्माण के लिए। सीमित ऑक्सीजन की मदद से तैयार किया जाने वाला बायोचार एक महीन दाना का रुप लेता है। इसे सामान्य बोलचाल की भाषा में चारकोल कहा जाता है। एकदम सामान्य मात्रा में इसे मिट्टी में मिलाया जाता है। जिसके गुण बरसों तक खेतों में बने रहते हैं और सतत् प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखते हैं।

सुधरेगी सेहत मिट्टी की

बायोचार का उपयोग न केवल मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखता है बल्कि जल धारण क्षमता को बढ़ाता है, जो आज की प्रमुख समस्या है। इसके साथ यह उर्वरक की जरूरत को भी कम करता है। इसलिए इसे फसलों के उत्पादन में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाए रखने में सक्षम होता है। सूखे क्षेत्रों के लिए इस वरदान माना जाता है।

अतिरिक्त लाभ यह

फसल अवशेष का प्रबंधन कठिन हो चुका है। पर्यावरणीय नुकसान साथ-साथ बढ़ रहा है। ऐसी समस्या के निदान के लिए बायोचार ही प्रभावी उपाय साबित होने वाला है क्योंकि यह फसल अवशेष से ही बनाया जाता है। इसके साथ बड़ा लाभ यह होता है कि बायोचार के नियंत्रित मात्रा में उपयोग से मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म मित्र कीट की आबादी प्राकृतिक रूप में बढ़ती है।

बायोचार जिससे मिट्टी बनेगी उपजाऊ

बायोचार के प्रयोग से जैविक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलेगा। उत्पाद भी गुणवत्तापूर्ण होंगे। इससे पुआल जलाने की समस्या से भी किसानों को निजात मिल जाएगी। पर्यावरण प्रदूषित नहीं होगा और खेतों में पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध रहेंगे।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर