नगरीय निकाय रतनपुर आम चुनाव
बुद्धिसागर सोनी
तीसरे पंचवर्षीय में यद्यपि भाजपा का परिषद ही सत्तारूढ़ हुआ किन्तु वह निर्दलीय समर्थन की बैसाखी पर टिका था। आम चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा का जनाधार कमजोर रहा। कारण था विगत कार्यकाल में सामूहिक इस्तीफा के बाद इस्तीफा वापस लेने वालों में कुछ पार्षद असंतुष्ट रह गये थे। लिहाजा उन वार्डों में मत प्रतिशत गिरा और इसका लाभ पिछली जनमत में महज तीन सीटों में सिमट चुकी कांग्रेस को मिला। निर्दलीय समर्थन के बाद अध्यक्षीय आसंदी पर घनश्याम रात्रे विराजमान हुये। घनश्याम रात्रे निवर्तमान परिषद में पार्षद थे। नगर पंचायत का खाद्य विभाग इनके प्रभार में था।
नगर में संपन्न आम चुनाव की चर्चा के दौरान इसके ठीक पूर्व कोटा विधानसभा क्षेत्र के क्षत्रप तथा कांग्रेस के अजेय योद्धा राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के निधन के कारण हुए मध्यावधि चुनाव की चर्चा लाजमी है। कोटा विधानसभा का मध्यावधि चुनाव हाई प्रोफाइल था। जनमत के पलड़े में एक तरफ राज्य के सत्ता में काबिज डाॅक्टर रमनसिंह के भाजपा सरकार की साख थी तो दूसरी तरफ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी का जनाधार दांव पर था। मध्यावधि चुनाव में उनकी धर्मपत्नी डाॅक्टर रेणु जोगी कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहीं थी।
कोटा विधानसभा सीट अपने प्रथम चुनाव से ही कांग्रेस का परंपरागत सीट रहा है। विपक्षी पार्टियों के लाख कोशिशों के बाद भी यहां कांग्रेस का परचम नहीं झुका। लिहाजा यह चुनाव भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए भी नाक का सवाल था। “ना भूतो ना भविष्यति” बृजमोहन अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, सरोज पांडेय जैसे स्टार प्रचारकों की ताबड़तोड़ जनसभायें। भागमभाग करती गाड़ियों का काफिला, प्रसारण संसाधनों का चिल्ल-पों, प्रदेश भर के समर्थकों का जमावड़ा। मानो यह साधारण सा मध्यावधि चुनाव चुनावी रण ना होकर समरांगण में लड़ा जाने वाला भीषण युद्ध हो। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की आवाजाही और सीधे संपर्क ने नगर के युवा बोध को ना केवल राजनीति की ओर प्रेरित किया बल्कि राजनीति प्रेरित दुष्प्रभावों के दायरे में ला खड़ा किया। कहते हैं ना ज्वार लौट जाने के बाद निशानियां रह जाती है। कुछ साफ सुथरे मैदान तो कुछ गंदगी भरे बदरंग निशान। रतनपुर निकाय के भवसागर में भी उन बदरंग निशानों का जखीरा भरा रह गया।
हाइ प्रोफाइल चुनाव में जनता जनार्दन ने रेवड़ियां तो सबकी खायी लेकिन जनमत का आशीर्वाद भाजी और सूखी रोटी को दिया। भाजपा के ताम झाम और लाव लश्कर भरे प्रचार पर अजीत जोगी का कुशल रणनीतिक नेतृत्व भारी पड़ा। रेणु जोगी कांग्रेस का गढ़ बचाने में सफल रहीं। भाजपा का गढ़ लूटने का मंसूबा पूरा ना हुआ। हां लेकिन कारवां गुजरने के बाद नगर में शेष रह गये गुबार गुब्बारों में तब्दील हो गये। उड़ानें ऊंची हो गई। माटी का मोल बे-मोल कर आसमान को मुट्ठियों में कैद कर लिया।
मध्यावधि चुनाव के बाद नगर पंचायत रतनपुर के स्थायी आय संसाधनों को परिषद की कुदृष्टि लग गई। 2007-08 में निकाय के स्वामित्व वाली छोटे बड़े तालाबों की संख्या ( निस्तार पत्रिका एवं आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार ) 159 थी। तालाब ठेका के अलावा दैनिक/साप्ताहिक बाजार तथा मवेशी बाजार से निकाय को सालाना आधा करोड़ का राजस्व मिलता था। इन आय संसाधनों के ठेका पद्धति में परिषदीय दबाव बनाकर बंदरबांट किया जाने लगा। जिसके कारण ना केवल स्वायत्तशासी स्थानीय निकाय को बल्कि स्टाम्प ड्यूटी के रूप में राज्य एवं केन्द्र शासन को लाखों रुपयों का चूना लगाया गया। आय संसाधनों में कुदृष्टि के साथ ही मूलभूत विकास मद, अधोसंरचना, जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बंदरबांट। 1000 से भी ज्यादा गरीबी रेखा राशनकार्डों की अफरातफरी जो विभागीय जांच में राशन दुकानों तथा पार्षदों के घर से जब्त किया गया।
विगत तीनों पंचवर्षीय में जनप्रतिनिधियों के निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार ने ना केवल निकाय के प्रशासन को अपितु नगर के समस्त सरकारी दफ्तरों, पुलिस प्रशासन एवं शिक्षा केन्द्रों को निरंकुश और स्वेच्छाचारी बना दिया। नगर के प्रत्येक वार्डों में सरकारी तौर पर प्रतिबंधित शराब और मादक पदार्थों के अवैध ठीहे खुल गये। नगर के पर्यटन स्थल, मंदिर और तालाब नशेड़ियों का अड्डा बन गया। नगर में अपराधियों की तूती बोलने लगी। इन सब पर अंकुश रखने वाले चौथे स्तंभ के नुमाइंदों के कलम पर कलंक का कालिख लग गया।
क्रमशः जारी…. 5….
लेखक साहित्य सेवक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं । आलेख लोक मीमांसा पर आधारित उनके निजी विचार है। इसमें कोई भी संपादकीय हस्तक्षेप नहीं है।