नगरीय निकाय रतनपुर आम चुनाव


                   बुद्धिसागर सोनी
        नगरीय निकाय के चौथे पंचवर्षीय चुनाव आते आते धार्मिक पर्यटन नगरी की दशा और दिशा तय हो चुका था।  धर्मनगरी अधर्म और अराजकता के मकड़जाल में उलझ गया।  राजपत्र में धार्मिक पर्यटन नगर घोषित होने के बाद केन्द्र एवं राज्य शासन द्वारा प्रदेश के अन्य पर्यटन स्थलों के साथ रतनपुर के पर्यटनीय विकास हेतु केन्द्र एवं राज्य प्रवर्तित योजनाओं, परियोजनाओं का पिटारा खोल दिया। परिषद को चाहिए था कि शासन द्वारा नगर में करायें जा रहे विकास कार्यो पर सतत मानिटरिंग  करते हुए शासन  के प्राक्कलन के मुताबिक कार्य करने निर्माण एजेंसी को बाध्य करे।  यदि सत्तारूढ़ परिषदीय आसंदी अपने कर्तव्य के प्रति निरापदता बरते तो प्रतिपक्ष की सर्वोच्च आसंदी सत्तारूढ़ आसंदी को जनहित नगर हित तथा राष्ट्रीय हित के लिए बाध्य कर सकता है।  किंतु नगर और नागरिकों का दुर्भाग्य कि एक बराबर सीट हासिल वाले पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधि तथा बैसाखी बनकर सहारा देने वाले जनप्रतिनिधि के साथ “तू भी अन्ना मैं भी अन्ना” वाला गन्ना चूसते रहे।  
     परिषदीय आसंदी गन्ना चूसने में इतना मशगूल हुआ कि नगर के भीतर क्या हो रहा है इसकी परवाह ना रही।  इस कार्यकाल के दौरान धार्मिक नगर में दर्जन भर चोरी, सेंधमारी, रहजनी, आधा दर्जन हत्या, नगर के आसपास ज्ञात अज्ञात आधा दर्जन लाशों की बरामदगी, कुल जमा प्रशासनहीन प्रशासनिक व्यवस्था।  अराजकता का दायरा इतना बड़ा कि राज्य पर्यटन मंडल द्वारा प्रदेश भर में स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले महोत्सवों की सूची में से “रतनपुर महोत्सव” को स्थायी रुप से “डिलीट” करना पड़ गया। 
        आइये अब चर्चा करते हैं निकाय के चौथे आमचुनाव की।  इस चुनाव में जनता ने जनमत का हार कांग्रेस की युवा प्रत्याशी आशा सूर्यवंशी के गले में डाला।  आशा सूर्यवंशी ने भाजपा के कौशिल्या मंडलोई को करारी शिकस्त देते हुए भाजपा के मंडल एवं प्रदेश कार्यकारिणी को आत्ममंथन के लिए विवश कर दिया।  जनमत ने निरंकुश और अराजक हो चुके भाजपा कार्यकारिणी को सिरे से नकार दिया।  चुनावी समर में उतरने से पूर्व आशा महाविद्यालयीन छात्रा थी।  राजनीतिक तौर पर एकदम शून्य और अपरिपक्व नवयुवती।  लेकिन जनता ने अनुभवी प्रत्याशियों के ऊपर नये चेहरे को तरजीह दिया।  जनता की सोच थी कि नई आसंदी की सोच नगर हित की दिशा में काम करेंगी। लेकिन हुआ इसके एकदम विपरीत।  अध्यक्ष के अनूभवहीनत को हथियार बनाकर कांग्रेस के स्थानीय दिग्गज और प्रतिपक्ष में बैठे भाजपा के बाहुबली पार्षदों ने परिषदीय बैठकों में अड़ंगा डालना शुरु कर दिया।  बिना किसी ठोस निर्णय के बार -बार रद्द होने वाली बैठकों से परिषदीय आसंदी शर्मसार होती रही।  इस गतिरोध के कारण ना केवल नगर का विकास मृतप्राय हो गया बल्कि जनता के आवश्यक आर्य भी प्रभावित हो गया।  अध्यक्ष और चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले कांग्रेसी जनप्रतिनिधि के बीच टकराव की स्थिति निर्मित हो गया।  सत्तारूढ़ कांग्रेस में आयी दरार का लाभ उठाते हुए भाजपा के दबंग और बाहुबली पार्षदों ने मोर्चा खोल दिया।  अध्यक्षीय आसंदी पर एकला चलो का हालात बन गया।  दो साल बीतते बीतते टकराव इतना बढ़ गया कि अध्यक्ष को छोड़कर पक्ष और विपक्ष के सभी पार्षद लामबंद होकर विरोध पर उतर आये। एक दो पार्षदों ने महिला अध्यक्ष के साथ गाली-गलौच करते हुए हाथापाई भी कर दिया।  पानी सिर से ऊपर गया तो आशा देवी थाना जा पहुंची।  यानि निकाय के भीतर का मामला गलियों से होकर थाना की दहलीज लांघ गया।  आशा देवी ने एक कांग्रेसी और एक भाजपाई बाहुबली के विरुद्ध हरिजन एक्ट सहित मारपीट, अभद्रता तथा नारी उत्पीड़न का मामला दर्ज करा दिया।  इससे बौखलाये कार्यकारिणी ने अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रख दिया। लिहाजा अध्यक्षीय आसंदी पर खतरा मंडराने लगा। 
     इस स्थिति से निपटने निर्वाचन आयोग और जिला प्रशासन ने बीच का रास्ता इख्तियार करते हुए “खाली कुर्सी और भरी कुर्सी” का विकल्प तलाशते हुए निर्णय का जिम्मा जनता जनार्दन पर छोड़ दिया।  विगत साढ़े तीन पंचवर्षीय में परिषदीय आसंदी के नखरे और चोंचले सहने वाली जनता को एक ही परिषदीय कार्यकाल में दो बार मतदान करना पड़ा।  जनता ने परिषद पर अपना गुस्सा उतारते हुए आशा सूर्यवंशी के पक्ष में वोट देकर नगर विकास में अड़ंगा डालने वाले बाहुबलियों को सबक सिखाया। 
         क्रमशः जारी …6…           
     लेखक साहित्य सेवक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं आलेख लोक मीमांसा पर आधारित उनके निजी विचार है। इसमें कोई भी संपादकीय हस्तक्षेप नहीं है।