गांवों में मुनादी, अलर्ट पर मैदानी अमला

बलौदा बाजार। फसल अवशेष जलाया, तो भारी जुर्माना देना होगा। कृषि विभाग ने अपने मैदानी अमले को निगरानी बढ़ाने के आदेश के साथ किसानों को सलाह दी है कि इस हानिकारक काम से बचें, अन्यथा अर्थ दंड देना होगा।

परिपक्वता अवधि पूरी कर लेने के बाद अब खरीफ फसलों की कटाई के लिए हार्वेस्टर की पहुंच, खेतों में होने लगी है। इसी के साथ फसल अवशेष खेतों में ही छोड़ देने का सिलसिला भी चालू हो चुका है। इस स्थिति पर नजर रख रहे कृषि विभाग ने अवशेष को जलाने की बजाय प्रबंधन पर जोर देने की कवायद, ना सिर्फ चालू कर दी है बल्कि अपने मैदानी अमले को अलर्ट पर रहने के निर्देश दे दिए हैं कि वे इस स्थिति पर नजर रखें और पराली प्रबंधन के लिए किसानों को समझाएं।


जलाने से यह नुकसान

देश में फसल अवशेष का सालाना उत्पादन लगभग 154.59 मीट्रिक टन के आसपास है। इसे यूं ही जलाने से 0.2 36 मीट्रिक टन नाइट्रोजन, 0.009 मीट्रिक टन फास्फोरस, और 0.200 मीट्रिक टन पोटाश का नुकसान होता है। इसके अलावा मिट्टी में रहने वाले मित्र कीट पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं और उर्वरा शक्ति को भारी नुकसान होता है।


प्रबंधन के यह उपाय

पराली का उपयोग कागज बनाने में होता है। इसके अलावा मशरूम उत्पादन के लिए सबसे बढ़िया साधन है। यदि यह नहीं कर सकते तो कंपोस्ट खाद भी बनाया जा सकता है, जो प्राकृतिक खाद का ही एक रूप है। इसके अलावा इसे ईंधन और पशु चारा के लिएआदर्श माना गया है। लिहाजा फसल अवशेष प्रबंधन पर इस बार विशेष जोर दिया जा रहा है।


डीकंपोज भी…

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए जो विधि बताई है, उस पर खास जोर दिया जा रहा है। इस विधि से फसल अवशेष से नुकसानरहित, ऐसी खाद बनाई जा सकती है, जो रासायनिक खाद का बेहतर विकल्प होगी। मालूम हो कि इस विधि को लेकर प्रयोगधर्मी किसानों में अच्छी रुचि दिखाई जा रही है।

फसल अवशेष जलाने जैसी गतिविधियों को लेकर मैदानी अमले को अलर्ट किया जा चुका है। किसानों से भी आग्रह है कि जलाने की जगह प्रबंधन को प्राथमिकता दें। जिससे भूमि को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

  • एस. आर. पैकरा, उपसंचालक, कृषि, बलौदा बाजार