*कछरिहा*
बिलासपुर। प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को छत्तीसगढ़िया रंग देना शुरू कर दिया।। छत्तीसगढ़ के पहले त्योहार हरेली की छुट्टी,कृष्ण जन्माष्टमी पर ड्राई डे की घोषणा जैसे एक के बाद उठाये गये कई कदमों से उन्होंने जाहिर कर दिया कि उनकी सरकार छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक जीवन को अपने एजेंडे में सबसे टॉप पर रखती है। शायद यह भूपेश बघेल का ही असर था कि जगदलपुर में चिंतन के लिए जुटे भाजपाई नेता भी पहली बार अपने शिविर में छत्तीसगढ़िया छटा, बिखेरने के लिए मान्दर की थाप पर नाचते दिखे।। लेकिन, भाजपा के नेता इसके बावजूद अपना वैसा छत्तीसगढ़िया रंग नहीं दिखा सके।जैसा भूपेश बघेल गाहे-बगाहे दिखाया करते हैं। कभी हथेली पर भंवरा चलाकर तो कभी गेंड़ी पर चढ़कर…सवाल यह है कि प्रदेश भाजपा के डॉ रमन सिंह से लेकर नेता प्रतिपक्ष और तमाम नेताओं में, ऐसे कितने हैं..? जिन्हे गेंड़ी पर चढ़कर चलना आता है.. अच्छा होता सत्ता की कुर्सी पर चढ़ने के पहले भाजपा के बड़े लोग गेंड़ी पर चढ़ना सीख लेते.. यह उनके स्वास्थ्य और राजनीति दोनों के लिए ही फलदाई होगा।
धर्मजीत सिंह की चुप्पी या रहस्यमय खामोशी
इस हफ्ते का सबसे बड़ा लाजवाब सवाल यह है कि क्या धर्मजीत सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं..? दरअसल यह सवाल हमें इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि डॉक्टर रेणु जोगी ने अपने एक हालिया बयान में कहा था कि धर्मजीत सिंह का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर है। इसमें उन्होंने देवव्रत सिंह तथा प्रमोद शर्मा का नाम लेते हुए कहा था कि उनका झुकाव कांग्रेस की ओर है। जहां तक देवव्रत सिंह की बात है उन्होंने यह बात किसी से छुपा कर भी नहीं रखी है कि वे कांग्रेस में जाना चाहते हैं। लेकिन डॉक्टर रेणु जोगी के बयान के बाद भी धर्मजीत सिंह की चुप्पी वास्तव में कई बड़े सवालों को,सर उठाने का मौका दे रही है।। यह ठीक है कि युवा तुर्क के नाम से विख्यात धर्मजीत सिंह के सभी पार्टियों के नेताओं से अनन्य व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। लेकिन उनका भाजपा की ओर विशेष झुकाव (जैसा डॉ रेणु जोगी कह रही है ऐसा) अभी तक खुले रूप में देखने को नहीं मिला है। दिलचस्प यह है कि डॉक्टर रेणु योगी के बयान के बाद भी धर्मजीत सिंह ने इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा है। मीडिया से भी इस मामले में उन्होंने दूरी बनाकर रखी हुई है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब खुद डॉक्टर रेणु जोगी यह कह रही है कि धर्मजीत सिंह का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ है तो उनकी ओर से कोई न कोई बात जल्द ही सामने आनी चाहिए ऐसी लोग उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन ऐसा ना कर उन्होंने इस मुद्दे पर जिस तरह का मौन साधा हुआ है.. उसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल और जिज्ञासाएं कुलबुला रही हैं।
एसडीएम इन वेटिंग
हाल ही में बिलासपुर तहसील से रुखसत पाने वाले अधिकारियों में से एक अधिकारी को एसडीएम इन वेटिंग बोला जा रहा है। हालांकि इस समय एसडीएम के पद पर जो शख्स विराजमान हैं। उन्होंने कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर में बिलासपुर के लिए जो कुछ किया है.. उनके उस योगदान का यह शहर हमेशा ऋणी रहेगा। लेकिन फिर भी अगर किसी की नजर एसडीएम की कुर्सी पर है तो दरवाजे पर हरी मिर्च और नींबू टांग कर इस बला से निजात पाया जा सकता है।
ब्राह्मणों के लिए कोई नहीं बोला
छत्तीसगढ़ में ब्राह्मण समाज राजनीतिक और आर्थिक रूप से किस तरह पर पिछडता जा रहा है, यह बोलने की कोई जरूरत नहीं है। सभी राजनीतिक दलों को सांगठनिक रूप से पंन्दोली देने वाले इस समाज की बेचारगी, हाल में तब देखने को मिली, जब समाज पर शब्दभेदी बाण चल रहे थे। लेकिन कांग्रेस तो दूर, नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री समेत भारतीय जनता पार्टी के किसी भी नेता ने ब्राह्मणों के लिए दो शब्द तक बोलना मुनासिब नहीं समझा। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस मामले में जो भूमिका निभाई उसके कारण इसका जल्द ही पटाक्षेप हो गया।लेकिन इस कठिन मौके पर चुप्पी साधने वालों को, समाज की ओर से यह संदेश जरुर भेजा जाना चाहिए कि–
मौके पे तुम ना आए
तो कुछ हम न मर गए
बात रह गई
और दिन गुजर गए
अब जरा..मोर, रायपुर वाले भांटो..!
बस्तर के चिंतन शिविर में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का मांदर की थाप पर डांस, सभी ने देखा होगा। लेकिन इस डांस के वीडियो में केवल नंद कुमार साय ही सही ढंग से नाच रहे थे।बाकी सभी नेताओं का नाच उन्हें नौसिखिया ही साबित कर रहा था। इसके बाद मौका आया पोरा तीजा त्यौहार का..। इसमें मुख्यमंत्री निवास पर हुए कार्यक्रम में मोर रायपुर वाले भांटो गाने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस तरह झूम झूम कर नाचे। उसके कारण बस्तर में मांदर की थाप पर हुआ भाजपा नेताओं का नाच फीका पड गया।।।
सांप निकलने के बाद लाठी पटकना
“एक के बाद एक” हुए तबादलों के पश्चात बिलासपुर तहसील की सूरत और सीरत तकरीबन बदल चुकी है। सभी कुर्सियों पर नए नवेले अधिकारी दिखाई दे रहे हैं। मजे की बात यह है कि पुराने खटराग अधिकारियों के दौर में जब 1-2 अधिकारियों के कारण बिलासपुर के सभी लोग परेशान हलाकान हो रहे थे। तब तो बड़े अधिकारियों ने बिलासपुर तहसील कार्यालय की ओर जरा सा ध्यान देना भी मुनासिब नहीं समझा। और अब, जब से खटराग या कहें ताहुतदार अधिकारी यहां से रुखसत हो चुके हैं। तब से यहां एक के बाद एक लगातार औचक निरीक्षण किए जा रहे हैं… सांप के निकल जाने के बाद लाठी पटकना या पानी निकलने के बाद,बाध बांधना शायद इसी को कहते हैं.!
गोविंदा आला रे..!!
इस जन्माष्टमी में कोविड-19 के नियमों के चलते ना तो दहीहंडी फोड़ के आयोजन हुए और न गोविंदा आला रे का कोई, शोर ही सुनाई दिया।। लेकिन जन्माष्टमी के आसपास ही बिलासपुर की राजनीतिक दही हांडी फोड़ने की तैयारियां शुरू हो चुकी है। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल और उनकी टीम वार्ड-वार्ड में घूमकर राजनीति का रियाज शुरू कर चुकी है। देखना यह होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव के ढाई साल पहले शुरू हुई यह कवायद क्या रंग लाती है..?
करु भात और निर्जला उपवास का डर
हाल ही में सम्पन्न हुआ तीजा त्यौहार इस मायने में अपवाद था कि इस त्यौहार पर बिजली गोल नहीं हुई।। इसके लिए तीजा पर्व के बाद विद्युत मण्डल के एक अधिकारी से चर्चा की तो उनका कहना था।।। महिलाओं से कौन नहीं डरता।। उस पर करू भात खाकर निर्जला उपवास पर बैठी महिलाओं से तो बचकर ही रहना होगा।। विद्युत मंडल के अधिकारियों को डर था कि अगर तीजा पर बिजली गोल की तो उपसहिन महिलाओं का कोप उन पर बिजलियां भी गिरा सकता है..शायद इसी डर से बिजली वाले साहबों ने तीजा के दिन पूरे समय तक विद्युत आपूर्ति बनाए रखी..
ढाई-ढाई के बिना अधूरा..
इधर 1 माह से प्रदेश की ऐसी कोई भी राजनीतिक चर्चा अथवा बहस, अधूरी रहती है.. जिसमें ढाई-ढाई का जिक्र ना हो। लोग धीरे से छेड़ ही देते हैं कि क्या हुआ ढाई-ढाई का.. अब उन्हें कौन बताए यह ढाई ढाई शब्द कितना मारक है.. इसे वही जानता है जिसे शतरंज की बिसात पर ढाई घर चलने वाले घोड़े का खौफ मालूम हो..!!
साभार *हमर-देस+हमर-प्रदेस*