भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा को मिली सफलता
बिलासपुर । खुशखबरी। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने स्वीट कॉर्न की ऐसी संकर प्रजाति तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है जो अब तक उपलब्ध प्रजातियों से 10 दिन पहले तैयार हो जाएगी। राहत की बात यह कि नई प्रजाति समस्या रहित होगी याने कीट प्रकोप जैसी दिक्कत किसानों के सामने नहीं आएगी।
कम पानी में तैयार होने वाली स्वीट कॉर्न और बेबी कॉर्न की बोनी का समय आ चुका है। पूरे साल भरपूर कमाई देने वाली इसकी फसल ले रहे किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी यह की एक नई प्रजाति उन तक पहुंचने की तैयारी में है, जिसे स्वीट कॉर्न ए बी एस एच- वन के नाम से पहचाना जाएगा। समस्या रहित इस प्रजाति के आने से किसानों की आय तो बढ़ेगी ही साथ ही, उपभोक्ताओं को ऊंची कीमत पर खरीदी से भी छुटकारा मिलेगा क्योंकि यह प्रजाति भरपूर उत्पादन देने वाली मानी जा रही है।
आया समय बोनी का
साल के अप्रैल, मई और दिसंबर, जनवरी के दिनों को छोड़कर शेष 8 माह तक बोनी और फसल ली जा सकती है। पहली फसल की बोनी के लिए समय अब दस्तक दे चुका है। जैसा मौसम बना हुआ है, वह बोनी के लिहाज से आदर्श समय है। 70 से 75 दिन में तैयार होने वाली प्रजाति पूसा स्वीट कॉर्न- वन और पूसा स्वीट कॉर्न-टू की बोनी करने पर अपेक्षित परिणाम मिलेंगे।
समस्या रहित नई प्रजाति

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने बढ़ती मांग और बढ़ते बाजार को देखते हुए ,नई संकर प्रजाति ए बी एस एच- वन विकसित की है। इसकी विशेषता यह है कि नई प्रजाति ना केवल 10 दिन पहले यानी 50 से 60 दिन में तैयार हो जाएगी बल्कि यह सभी किस्म की समस्या से छुटकारा दिलाने वाली है। प्रबंधन का काम सही होने के बाद प्रति हेक्टेयर उत्पादन 21 से 22 क्विंटल का अनुमान है।
बोनी इस विधि से
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने जो प्रजातियां तैयार की हैं, उनके लिए बोनी की विधियां भी बताई हैं। इसके अनुसार पौधों से पौधों की मानक दूरी 50 सेंटीमीटर रखनी होगी। जबकि कतार से कतार की मानक दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर का होना आदर्श तय हुआ है।
यह हैं खरीददार
स्वीट कॉर्न और बेबी कॉर्न की सबसे बड़ी उपभोक्ता वे ईकाइयां हैं जो इसका सूप बनातीं हैं। इसके अलावा स्नैक्स बनाने वाली कंपनियां भी बड़ी मात्रा में खरीदी करतीं हैं। अपना घरेलू उपभोक्ता भी बाजार में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखता है।
स्वीट कॉर्न के उपलब्ध बीज से हासिल हो रही फसल की तुलना में नई प्रजाति के दानों में मिठास की मात्रा अधिक है। परिपक्वता अवधि कम होने से बाजार की मांग का लाभ किसानों को मिलेगा।
- डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट, एग्रोनॉमी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर