श्रद्धांजलि
फोटो में फ्रेम हो गए छायाकार बुधराम
कभी मेले, मड़ई की पहचान थे। मुफलिसी की दौर में लोगों के अमीरों वाला शौक पूरा कर बरसों अंचल के चेहरे अपनी चलित स्टुडियो में फ्रेम करते रहे। बदलते दौर और दराज होते उम्र में बिसरते चले गए। बरसों बरस लोगों को छायाकारी कर खुद ही आज खुद ही फोटो में फ्रेम हो गए। बुधराम कारांडे।
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर नगर पालिका क्षेत्र के ओछीना पारा वार्ड नंबर 10 के निवासी थे बुधराम कारांडे। अस्सी के दशक में अंचल में लगने वाले मेले, मड़ई, राऊत बाजार में उनकी चलित स्टुडियो सज जाती थी। जिसमें समाहित होती उस दौर की लग्जरी मोटर कार, हीरो-हिरोइनों और प्रकृति के रमणीय स्थलों के बड़े बड़े पोस्टर। जिसके सामने सैलानी अपनी पसंद के फ्रेम में कैमरे में कैद हो जाते। जिसे देखकर कर अब वे बीते बरसों की याद से रोमांचित भी होते होंगे। घर से बाहर निकलने के साथ ही कंधे पर लिपटे बैग में रखा कैमरा उसकी पहचान, साथी और परिवार पालने का भरोसा होता। प्रकृति से घुमक्कड़ घूमने फिरने कभी भी कहीं भी एक क्लिक पर अपनी रोटी और परिवार की जरुरतें पूरी करने थोड़ी रकम जुटा लेते थे। उनके जिंदादिली बातों से फोटो में सहज ही मुस्कान उतर आती थी। उदारीकरण के दौर के बाद जहां गांव का गांव बाजार बने। नई टेक्नोलॉजी ने इनकी पारिवारिक जरूरत की पूंजी पर भी कुठाराघात किया। कैमरे के साथ मनिहारी के सामानों की गठरी भी पीठ पर लद गई। मोबाईल क्लिक ने कंधे से कैमरे भी सरका दिया। सिर पर कपड़े डाल, ढक्कन खोल फोटो उतारने के दौर से इशारे से क्लिक होते कैमरों का युग देख अब आठ दशक से भी अधिक देखा-जीया जीवन को विराम दे बुधराम कारांडे अनंत यात्रा पर निकल गए। …. अलविदा कामरेड