श्रद्धांजलि

                   मेधा पाटकर

लुवारिया चला गया! यह खबर धक्कादायक ही नहीं, नर्मदा घाटी के 40 साल से चल रहे संघर्ष के साथियों के लिए दुःखदायक भी! एक ऐसा मूलनिवासी जिसका संकल्प रहा, ‘नहीं छोड़ेंगे नर्मदा किनारा।’

जलसिंधी गाव में नर्मदा किनारे का घर था लुवारिया का, जो बना रहा सालों तक नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत् सत्याग्रह का केंद्र! सभी आदिवासी कहते थे, ‘सत्याघर!’ लुवारिया की लाडी (पत्नी), छोटे बच्चे सबके साथ हम रहते थे…तो महसूस होती थी उसकी सादगी और सच्चाई भी। लुवारिया के माता पिता, भाई , सब सब थे ही आंदोलनकारी लेकिन लुवारिया जैसी एक पहाडी, भिलाली, दुबला पतला आदिवासी जब मुंह खोलकर जवाब देता तो उसमें बहती थी उसकी जिद्द, उसका जल, जंगल, जमीन से रिश्ता और उसका आंदोलन पर विश्वास भी।

लुवारिया के घर पर पहुंचते थे सैंकड़ों आदिवासी, घाटी के निवासी भी! लुवारिया वक्ता नही था, बावा महारिया जैसा, लेकिन उसकी भिलाली बोली बताती थी उसे ‘स्पष्टवक्ता!’ किसी पत्थरपर बैठकर, घर द्वार पर डटकर अपना मन्तव्य व्यक्त करने वाला लुवारिया कभी बनता था नेता लेकिन उसकी गहराई के कारण ही वह बन गया एक कलाकार क्या, ‘हीरो’, लंदन से आयी एक फिल्मकार से मिलने पर, फिल्म ‘Drowned Out’ का! एक बोट मिलने पर सबका परिवहन करने वाला लुवारिया, शासन के आश्वासनों की पोलखोल करने वाला लुवारिया जंगल, खेती और नदी से जुड़ा हुआ लुवारिया…. गुजरात की बसाहटों की हकीकत जानने वाला भी था।

जलसिंधी आधी अधिक डूबी… लुवारिया को बावा, गुलाबिया जैसे भाइयों के साथ गुजरात में जमीन स्वीकारनी पड़ी, उसमे भी कुछ फंसाहट भुगती। जलसिंधी कायम के लिए दूर न करने वाला लुवारिया, संपूर्ण पुनर्वास न मिलते हुए चला गया। उसने अपने बच्चों को जीवनशाला में, प्रगतीशील शाला में ही सिखाया… आज उसकी जुझारू पत्नी, बच्चे ही नहीं, माँ नर्मदा और हम परिवारजनों को छोड गया, जबकि आज भी शासन के वादे झूठ और लुवारिया के दावे सही साबित हो गये हैं।

लुवारिया, हजारों का पुनर्वास पाते हुए भी, हम शर्मिंदा है,बचे हुए विस्थापितों के लिए!

हम जिंदा है…तुम्हारी प्रेरणा, तुम्हारा योगदान भी जीवित रहेगा। तुम्हे सलाम!