कैंटिन, कुली, पार्किंग कॉन्ट्रेक्टर और ऑटो चालक हो रहे हताश

भाटापारा। यह चार भी परेशान हैं। पहले के दो बरस महामारी में बीते। अब चल रहा तीसरा साल, अचानक कभी भी निरस्त कर दी जाने वाली यात्री ट्रेनों से होने वाली परेशानी के बीच गुजर रहा है।

कैसे करें रोजी रोटी का इंतजाम ? यक्ष प्रश्न है स्टेशन के भीतर और बाहर के चार वर्ग के सामने। जवाब देने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है। लिहाजा खराब समय के बीच अच्छे समय की प्रतीक्षा की जा रही है।

हद से ज्यादा

कुली। नियमित नहीं होती आय। पहले कोरोना महामारी ने छीनी रोटी। जैसे – तैसे करके दिन गुजरे। सीमित गाड़ियों के परिचालन के बीच रोटी का इंतजाम किया गया। पटरी पर लौट भी नहीं पाई थी जिंदगी कि निरस्त होने का सिलसिला शुरू हो गया । जारी है यह आज भी। जो गाड़ियां चल रही हैं उनमे ऐसे यात्रियों की संख्या बेहद कम होती है, जिनके पास भारी लगेज होता है।

यहाँ मात्रा हुई कम

कैंटीन। ख़राब समय का सामना यह भी कर रहा है । हल्के नाश्ते उतनी ही मात्रा में बनाए जाते है, जितनी खपत हो सके। चाय बेचने वाले हाकरों की हालत बेहद ख़राब है। सुबह और देर रात आने वाली ट्रेन, चाय की मांग वाली यात्री गाड़िया मानी जाती हैं। यह निरस्त हैं। इसलिए गंभीर संकट के साए में हैं टी हाकर ।

कैसे दें पार्किंग फेयर

पार्किंग कांट्रेक्टर। 600 वाहन क्षमता वाला सायकल स्टेंड आज आधे से भी कम पर आ गया है। दैनिंक आना – जाना करने वाले यात्री, स्टेंड के लिए मजबूत सहारा थे। नियमित परिचालन के नहीं होने के बाद यात्रियों का यह वर्ग अब सड़क मार्ग का सहारा ले रहा है । इसलिए दो पहिया वाहनों के लिए तरस रहा है सायकल स्टेंड। बड़ी मुसीबत इसलिए क्योकि रेल प्रबंधन प्रतिकूल स्थितियों को देखते हुए भी पार्किंग फेयर पूरा वसूल कर रहा है।

जीवन बेहद कठिन

पेट्रोल, डीजल और ई – ऑटो। सहारा थी यात्री ट्रेनें । साथ छुट चूका है। लगभग पूरा दिन सवारियों की प्रतीक्षा में गुजर रहा है। बाजार भी पहले जैसा नहीं रहा, जिसके दम पर भरपूर सवारियां मिलती। गिनती की चल रही यात्री ट्रेन और ऑटो की बढ़ती संख्या के बीच जैसे – तैसे करके जीवन यापन कर रहा है यह वर्ग। इस तरह की प्रतिकूल स्थितियों के बीच रिक्शा का हाल सहज ही जाना जा सकता है। कौन सुनेगा या कौन करेगा, इस वर्ग की तकलीफ दूर ?

By MIG