आई तेजी, गई मांग, पूछ-परख तक नहीं


भाटापारा। 25 प्रतिशत तेजी। 50 प्रतिशत टूट। कुल जमा सार यह कि अक्षय तृतीया के पूर्व गुलजार रहने वाला मोर-मुकुट और कलगी का बाजार महज दो दिन पर सिमट गया है। हालात यहां तक आ पहुंचे हैं कि पूछ-परख तक नहीं निकल रही है।

महामारी के दौर में सभी ने कारोबार को नुकसान में जाते देखा। कुछ ने फिर से गति पकड़ ली, तो कई उबरने की राह पर है लेकिन बेहद छोटा सा मोर-मुकुट और कलगी का बाजार अब तक उबर नहीं पाया। संकट इस बार कुछ ज्यादा ही देखा जा रहा है क्योंकि सप्ताह भर तक गुलजार रहने वाला यह क्षेत्र सन्नाटा का सामना कर रहा है।

अब दरवाजे पर

महामारी के दौर में बाजार ने जैसी करवट बदली उसके घेरे में यह कारोबार भी आया। फेरीवाला के रूप में, अब यह भी शादी घरों में पहुंच रहा है। इसके अलावा गांव देहातों में खुल चुके सुहाग भंडार में भी इसकी उपलब्धता होने लगी है। इसलिए शहरों की दुकानों की रौनक गायब हो चुकी है।

सात नहीं, दो दिन

महामारी के पूर्व तक अक्षय तृतीया पर मोर-मुकुट और कलगी की दुकानें सप्ताह भर पूर्व से ही गुलजार हो जाया करतीं थीं। अब यह रौनक महज 2 दिन पर आकर ठहर गई है। ताजा स्थितियां हताश इसलिए कर रही है क्योंकि खरीदी तो दूर पूछ-परख तक नहीं निकल रही है। संकट मानी जा रही है यह स्थिति।

आई तेजी, गई मांग

25 प्रतिशत की तेजी के बाद अब मोर-मुकुट और कलगी का सेट 300 से 500 रुपए में ही मिल सकेगा। विपरीत परिस्थितियों के बीच 50 प्रतिशत मांग घटने के बाद यह तेजी, झटके से कम नहीं मानी जा रही है। उम्मीद केवल मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियों की होने वाली खरीदी से ही है, लेकिन यह भी 40 से 50 रुपए में ही लिए जा सकेंगे।