आदिगुरु शंकराचार्य के प्रवास के बीच चौतरफा अव्यवस्था
भाटापारा। सफाई सिरे से गायब। बिजली जब-तब गुल। जर्जर सड़कें कब सुधारी जाएंगी ? जैसे सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे । ऐसे में यातायात व्यवस्था कैसी होगी ? यह ना ही पूछें, तो बेहतर होगा। जिस शहर में यह सारी खामियां एक साथ देखने में मिल रहीं हों ,वहां के जनप्रतिनिधि कैसे होंगे ? यह सहज ही जाना जा सकता है।
संदर्भ- पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य का भाटापारा प्रवास। तैयारियां हो रहीं हैं। 24 घंटे बाद वे शहर में होंगे, लेकिन अपना शहर, अपनी मर्जी से चल रहा है। तैयारियों की जानकारी सड़कों पर लगीं पताकाओं से मिल रही है। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि कब हम अपनी जिम्मेदारी समझेंगे? कई विभाग ऐसे हैं, जिनकी जिम्मेदारी ऐसे आयोजन के दौरान अहम मानी जाती है, लेकिन जैसी दूरी उन्होंने बनाई हुई है, उसे लेकर अब नाराजगी देखी जा रही है।
मेरी मर्जी
बुनियादी सुविधाओं के लिए पालिका प्रशासन को जिम्मेदार माना जाता है लेकिन इसकी भूमिका बेहद लापरवाही भरी है। नियमित सफाई को लेकर जैसा रवैया इसने अख्तियार कर रखा है, उसका प्रमाण है, वे चौक और चौराहे, जहां कचरे अब भी मौजूद हैं। इसमें जयस्तंभ मार्ग, गार्डन के चारों तरफ की सड़क, मारवाड़ी कुआं, मंडी रोड, सदर बाजार से होकर बस स्टैंड जाने वाली सड़क मुख्य है। जहां कभी भी ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं।
हर सड़क की अपनी कहानी
सहज और निर्बाध आवाजाही के लिए बनीं सड़कें कब बनाई गई? जैसे सवालों के जवाब संबंधित विभाग शायद ही दे पाए। बन चुके गड्ढे, ब्रेकर और पैदल चलने वालों के लिए जगह को लेकर आपत्ति उठाने वालों के लिए जवाब एक ही है कि मत पूछिए, इन सवालों को क्योंकि कमोबेश पूरे शहर की आंतरिक सड़कों का हाल एक जैसा ही है।
चौपट यह व्यवस्था
जिस शहर में इतनी सारी अव्यवस्था एक साथ हों वहां की यातायात व्यवस्था कैसी होगी? यह सहज ही जानी जा सकती है। हर हिस्से में दोपहिया और चार पहिया वाहनों को खड़ा हुआ देखा जा सकता है। मजाल है, यातायात पुलिस ने कभी कार्रवाई की हो। रेडियम स्टीकर, रात में आवाजाही आसान बनाते हैं लेकिन इसे लेकर हमारी यातायात पुलिस कभी गंभीर नजर नहीं आई।
विज्ञप्तिवीरों की चुप्पी
सत्ता किसी भी पार्टी की हो। अपने शहर के जनप्रतिनिधियों ने विज्ञप्ति या बयान जारी करने का मौका कभी नहीं गंवाया लेकिन ताजा आयोजन और असुविधाओं को लेकर इन्होंने जैसा मौन साध रखा है, वह हैरत में डालने वाला है। आदि गुरु शंकराचार्य के परिक्रमा पथ को अब भी बेहतर किया जा सकता है लेकिन जिम्मेदारों की चुप्पी नाराजगी की बड़ी वजह बन रही है।