ब्रांडेड कोल्ड ड्रिंक्स, पानी, बर्फ और आइसक्रीम की मांग पर हांफने लगा बाजार

भाटापारा। कोल्ड ड्रिंक्स का फीडर मार्केट हांफ रहा है क्योंकि चौतरफा मांग का दबाव उस पर आ चुका है। यही हाल पानी का भी है, जिसकी आपूर्ति 4 फेरे लगाने के बाद भी पूरी नहीं हो पा रही है। बर्फ कारखाने चार पालियों में चल रहीं हैं, फिर भी डिमांड लगातार बढ़ रही है।

बरसों बाद गर्मी की मेहरबानी कोल्ड ड्रिंक्स, बर्फ और पानी के कारोबार पर देखी जा रही है। यह मेहरबानी इतनी ज्यादा है कि फीडर मार्केट के पसीने छूटते नजर आ रहे हैं मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में। चार गुना डिमांड और सेल के बाद राहत तो है लेकिन ब्रांडेड कोल्ड ड्रिंक और पानी की शॉर्टेज से यह क्षेत्र हैरत में है और हताश भी हो चला है। ऐसे में मजबूरी में लोकल प्रोडक्ट के जरिए यह मांग पूरी करनी पड़ रही है।

पहली बार 4 गुना

जार, बोतल और पाउच में मिलने वाले पानी की डिमांड पहली बार 4 गुना बढ़ चुकी है। यह अभी भी बढ़त की ओर है। जिले के कई कस्बों में संचालित होने वाली ऐसी इकाइयों के बाद भी भाटापारा की पहचान क्वालिटी वाटर प्रोड्यूसर और सप्लायर की बन चुकी है। लिहाजा मांग का दबाव यहां भी ज्यादा है। सीजन में 15 से 20 हजार लीटर पानी की रोजाना खपत वाला यह क्षेत्र अब 60 से 70 हजार लीटर पानी उपलब्ध करवा रहा है। इसके बाद भी मांग बनी हुई है।

यह डबल

बीती गर्मी में बर्फ की सिल्लियों की खपत प्रतिदिन 4 से 5 हजार क्विंटल दर्ज की गई थी। अब भीषण गर्मी की मांग ने, उत्पादन और आपूर्ति दोनों की मात्रा दोगुनी कर दी है। फिलहाल जिले में 10 हजार से 15 हजार क्विंटल बर्फ की खपत हो रही है। इसमें भी मांग का दबाव बना हुआ है। होटल-ढाबों की मांग के अलावा शादियों की भी डिमांड इसमें निकल चुकी है। इसके अलावा पानी पाउच बेचने वाली संस्थानें भी प्रमुख मांग क्षेत्र हैं।

सप्लाई लाइन शार्ट

गर्मी के मौसम में कोल्ड ड्रिंक्स के लिए हमारी पहचान जिले में फीडर मार्केट के रूप में है। शायद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब कोल्ड ड्रिंक्स की जबरदस्त शॉर्टेज हो रही है। सीजन के दिनों में 4 से 5 लाख रुपए रोज का कारोबार करने वाला यह फीडर मार्केट आज भले ही 10 लाख रुपए का कारोबार कर रहा हो लेकिन ब्रांडेड प्रॉडक्ट की कमी अभी भी बनी हुई है। लोकल प्रॉडक्ट के जरिए किसी तरह संभाली जा रही है। मांग कितने दिनों तक बनी रहेगी ? इसे लेकर यह क्षेत्र जवाब नहीं दे पा रहा है।

कौन देखता है ?

माना जाता रहा है कि आईसक्रीम के उपभोक्ता सीमित हैं। ब्रांडेड की भी हिस्सेदारी भले ही अच्छी- खासी हो लेकिन यह पहला साल है जब लोकल आईसक्रीम का मार्केट 2 गुना से आगे बढ़ चुका है। डिमांड का प्रेशर इतना ज्यादा है कि पैकिंग के लिए बने खाद्य सुरक्षा मानक के नियमों के पालन की ओर से आंखें मूंद ली गई है। ग्रामीण ही नहीं, शहरी क्षेत्र की डिमांड के बीच इस जरूरी नियम का परिपालन किया जाना अनिवार्य है लेकिन ध्यान, ना उत्पादन क्षेत्र दे रहा है, ना खाद्य सुरक्षा अधिकारी।