कीमत कम की, नहीं निकली डिमांड, अब पोहा मिलें घटाएंगी उत्पादन

भाटापारा। कीमत कम की लेकिन मांग वाले राज्यों की डिमांड नहीं निकली। बेहद सीमित विकल्प के बीच काम कर रहीं पोहा मिलों को इंतजार है, बाबा धाम से निकलने वाली मांग की, जो सावन के महीने में निकलती है। इस बीच काम के घंटे कम करने का फैसला लिया जा चुका है।

उपभोक्ता मांग का इंतजार कर रहीं पोहा मिलों के सामने यक्ष प्रश्न है कि उत्पादन के बाद तैयार पोहा के नए उपभोक्ता कैसे और कहां खोजें ? यह सवाल इसलिए भी आ रहा है क्योंकि सर्वाधिक मांग वाले राज्यों ने डिमांड में झटके से कटौती कर दी है। इसके अलावा घरेलू मांग में भी गिरावट आ रही है। इसलिए पहले तो कीमत कम करने का फैसला अमल में लाया गया, लेकिन अपेक्षित लाभ अब भी दूर है। उपाय कोई है नहीं, इसलिए अब काम के घंटे कम कर, नुकसान कम करने की कोशिश है।

80 नहीं अब 30 फ़ीसदी

पोहा उत्पादन के लिए देश में भाटापारा शिखर पर जाना जाता है। यहां उत्पादित पोहा के 80 फ़ीसदी मात्रा की खरीदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य करते हैं। इनकी मांग में 50 फ़ीसदी की गिरावट आ चुकी है। बचे 30 फ़ीसदी की ही खरीदी यह राज्य कर रहे हैं। घरेलू मांग भी स्थिर बनी हुई है। इसलिए संकट गहरा है।

कर रहे काम के घंटे कम

नए बाजार की तलाश कर रहीं पोहा मिलों ने जब देखा कि कीमत कम करने पर भी सफलता नहीं मिल रही है, तब नुकसान कम करने के लिए उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया। उपाय कोई है नहीं, इसलिए इस पर काम किया जाना चालू किया जा चुका है। पोहा मिलें अपनी सुविधा के अनुसार संचालन अवधि कम करने के लिए स्वतंत्र है। यह सूचना सदस्यों को दी जा रही है।

बाबा का सहारा

बड़े खरीददार राज्यों से कमजोर मांग के बाद अब बाबा धाम के डिमांड का इंतजार पोहा मिलें कर रहीं हैं। सावन में निकलने वाली यह मांग, हमेशा से बड़ा सहारा बनती आई है। लेकिन इसके लिए पूरा 1 माह और इंतजार करना होगा। इस मांग के, बाद की अवधि में भी इंतजार ही करना होगा, दीपावली की मांग के लिए।

ऐसा है हाल

पोहा मिलों ने कमजोर मांग के बीच जो भाव जारी किए हैं, उसके अनुसार 2700 से 3300 रुपए क्विंटल की कीमत तय है। बताते चलें कि इसके पहले यह 2800 से 3500 रुपए क्विंटल पर था। इस तरह 100 से 200 रुपए की टूट के बाद अपेक्षित मांग का अभाव अभी भी बना हुआ है।

उपभोक्ता राज्यों की मांग में 50 फ़ीसदी की गिरावट आ चुकी है। घरेलू मांग भी बेहद कमजोर है। इसलिए संचालन की अवधि कम की जा रही है।

रंजीत दावानी, अध्यक्ष, पोहा मिल एसोसिएशन, भाटापारा