जनप्रतिनिधियों को मौन अब पड़ेगा भारी
भाटापारा। स्वतंत्र जिला की मांग को पहली बार पड़ोसी का साथ मिलने जा रहा है। यह 18 किलोमीटर दूर रहता है। ‘मारो’ नाम का यह पड़ोसी अपनी तमाम जरूरतों के लिए भाटापारा पर ही निर्भर है। शासकीय कार्य में होती परेशानी से हलाकान मारो ने, अब गंभीरता से इस पर विचार करना चालू कर दिया है।
पक्ष और विपक्ष ने अपना मौन अब भी नहीं तोड़ा तो परिणाम बेहद खराब हो सकते हैं क्योंकि स्वतंत्र जिला की मांग को शहर के पड़ोसियों का भी साथ और समर्थन मिलने की शुरुआत हो चुकी है। पहला नाम मारो का है। सिमगा और सुहेला के पास अभी समय हैं। सोचिए और फैसला शीघ्र कीजिए क्योंकि अभी नहीं, तो कभी नहीं, जैसी स्थिति सामने आकर खड़ी हो चुकी है।
इसलिए पड़ोसी
बेमेतरा जिला का महत्वपूर्ण अंग है मारो। 55 किलोमीटर की दूरी, शासकीय कामकाज में पहले भी बाधा बनती थी, अब भी बन रही है। भाटापारा से महज 18 किलोमीटर की दूरी होने की वजह से यह दुश्वारी कम होगी। कारोबारी जरूरतों के लिए शहर का साथ पहले भी मिलता रहा है, अब भी मिल रहा है। कृषि उपज की भी जरूरत में अपना शहर प्राथमिकता में रहा है। स्वतंत्र जिला बनने से सभी काम एक बार में ही पूरे किए जा सकेंगे।
ऐसा है मारो
नगर पंचायत का दर्जा रखने वाला मारो, 12 वार्डो का एक महत्वपूर्ण कस्बा है। लगभग 15000 आबादी वाले इस क्षेत्र को पहचान मिली है महत्वपूर्ण कारोबारी और कृषि प्रधान कस्बे से। गहरी राजनीतिक समझ रखने वाले मारो में, मुश्किल समय पर साथ देने की गजब की क्षमता भी समय-समय पर देखने में आती रही है।
अभी नहीं, तो कभी नहीं
सुस्त राजनैतिक गतिविधियों और फैसलों के लिए अपने शहर की पहचान अब बेहद मजबूत हो चुकी है। 15 साल तक सत्ता सुख का आनंद ले चुकी भाजपा ने जैसा मौन साध रखा है, उसके बाद अब उस पर सवालों की बौछार हो रही है। सत्ता पक्ष की गतिविधियां भी गुस्से की वजह बन रही है। कई गुटों में बंटी, कांग्रेस के सामने स्वतंत्र जिला सियासी मुद्दा बन रहा है क्योंकि बड़े नेताओं की सहमति के बावजूद इस मांग से किनारा किया जा रहा है। लिहाजा पक्ष और विपक्ष को स्पष्ट जवाब देना होगा।