कैसे करें रोजी-रोटी का इंतजाम ?
संकट में कुली, हॉकर और ऑटो चालक
भाटापारा। गिनी चुनी गाड़ियां। चुनिंदा यात्री। कैसे करें रोजी-रोटी का इंतजाम ? सवाल उठा रहे कुलियों और हॉकरों की आवाज, जिम्मेदारों तक कौन पहुंचाएगा ? उन ऑटो चालकों की भी ऐसी ही परेशानी कब दूर की जाएगी ? यह ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसके जवाब खोजने पर भी नहीं मिलते।
कोरोना महामारी के दो बरस पूरे हो चुके हैं। यात्री ट्रेनें जब-तब बंद कर दी जा रही हैं। जो चल रहीं हैं, उनमें रिजर्वेशन पर ही यात्रा की शर्तें अब भी लागू है। लोकल ट्रेनें चल रहीं हैं लेकिन उनकी सीमित संख्या, परेशानी कम करने की बजाय बढ़ा ही रहीं हैं। मासिक सीजन टिकट की सुविधा केवल लोकल के लिए मंजूर की गई है लेकिन सुपरफास्ट एमएसटी पर चुप्पी अब भी बरकरार है। इससे सबसे ज्यादा वह वर्ग बदहाल स्थिति में आ चुका है, जिनका जीवन चलती गाड़ियों से ही चला करता था।
रोटी का संकट
एक समय था, जब गाड़ियां रुकने के पहले ही कुली दौड़ पड़ते थे, सवारी और सामान के लिए। अब समय है, गाड़ियों को तेज रफ्तार से आंखों के सामने गुजरता हुआ देखना। जो रुक रहीं हैं, उनसे उतर रहे यात्रियों की संख्या इतनी कम है कि उनके दम पर रोजी-रोटी का इंतजाम कर पाना संभव नहीं है।
ये सड़क पर
पॉलिश का काम और चना- मुरमुरा बेचने वाले हॉकर जीवन के सबसे कठिन दौर का सामना कर रहे हैं। हाथ ठेला किराए पर लेकर दैनिक जरूरतें पूरी करने में सारा दिन गुजर जा रहा है, फिर भी यह पूरी नहीं हो पा रहीं हैं क्योंकि चीजें बेतहाशा महंगी हो चुकी है और उपभोक्ता पूरी तरह दूरी बना चुका है।
गति नहीं
कोरोना काल ने पहली तगड़ी चोट पहुंचाई। डीजल लगातार झटके देता रहा लेकिन रेल के थमे हुए पहिए से जैसा झटका लगा है, उससे अब तक उबर नहीं पाया है ऑटो चालन का कारोबार। संख्या भले ही बेहद सीमित हो, लेकिन भरा- पूरा परिवार अब सड़क पर आ चला है। यह वर्ग अब भी इंतजार कर रहा है, पुरानी व्यवस्था के तहत परिचालन की। जिससे दोनों समय चूल्हा जलाया जा सके।संकट में नौकरी
संकट में नौकरी
सुपर फास्ट मासिक सीजन टिकट की सुविधा लेकर नौकरी करने वाला नौकरीपेशा वर्ग खतरे में आ चुका है। मजबूरी में आरक्षण पर यात्रा करके नौकरी बचाने की कोशिश, तगड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है लेकिन संकट दूर करने संकटमोचक की भूमिका निभाने के लिए कोई तैयार नहीं है। ऐसे में यह वर्ग भी खामोशी से सुविधा बहाली के इंतजार में है।