नहीं मिलेगी मदद प्रशासन और पुलिस से
भाटापारा। फिसलन से बचना है तो दूसरा रास्ता तलाश करें । नालियों से निकासी नहीं हो रही है, तो व्यवस्था खुद को बनानी होगी। सड़क पर फैल आई प्रदर्शन सामग्रियां आवाजाही में रुकावट बन रहीं हैं तो रास्ता बदल लेना ही सही होगा क्योंकि प्रशासन से कहीं कोई मदद नहीं मिलेगी।
जिम्मेदारों का मौन कुछ ऐसा ही संदेश दे रहा है। ऐसे काम को भी छूट दी जा रही है जो नालियों पर ही वेस्ट फेक रहे हैं। भवन निर्माण करने वाले भी सामग्री, सड़क पर ही रखने की सुविधा के पात्र हैं। इस काम में उन्हें भी राहत दी गई है जिनका मलबा नालियों को पूरी तरह बाधित कर चुका है | अब बात करें उस उस यातायात व्यवस्था की, जो पूरी तरह चौपट हो चुकी है, जिसे सुधारने में जरा भी दिलचस्पी दिखाई नहीं दे देती।
बारिश के पहले
मानसून के पहले जैसी तैयारी विद्युत मंडल करता है, वैसी जागरूकता स्थानीय प्रशासन कभी दिखा नहीं पाया। पुराना निर्माण तोड़ने के बाद निकला मलबा नालियों का बहाव यत्र-तत्र जिस तरह रोक रहा है,उससे ना सरोकार है,नाआगत संकट की चिंता। लिहाजा ऐसी स्थिति से बचने के प्रयास उनको स्वयं करने होंगे, जो इससे प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि स्थानीय प्रशासन ना कार्यवाही करेगा ना मदद।
इस काम की खुली छूट
गाड़ियों की मरम्मत और फेब्रिकेशन वर्क के लिए सीजन है यह माह। जोर- शोर से चल रहीं यह संस्थानें जिस तरह सड़क पर ही सामग्री फैलाकर काम कर रहीं हैं, वह भी परेशानी ही पैदा कर रही है। जय स्तंभ चौक हो या मंडी रोड या फिर हर वह ऐसी सड़क, जहां आवाजाही भरपूर होती है, वहां की संस्थानें भी खुली छूट के साथ संचालित हो रहीं हैं ।
सामंजस्य जरा भी नहीं
नगर पालिका और यातायात पुलिस, बेहतर और बाधारहित आवागमन के लिए सदा से एक दूसरे के पूरक रहते आए हैं। अब इसमें कृषि उपज मंडी का भी नाम लिख लेना जरुरी होगा क्योकि इस समय यह तीसरा पक्ष भी बदहाल यातायात के लिए समान रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है। ठोस प्रबंधन के लिए इन तीनों के बीच बेहतर तालमेल और सामंजस्य फिलहाल पहली और अंतिम जरुरत है।