ट्रेफिक पुलिस को दे रहे चुनौती
भाटापारा। क्या पटरी से उतर चुका ट्रेफिक सिस्टम सुधारा जा सकेगा ? हां या नहीं, या फिर जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा । जवाब शून्य में ही है। नए अधिकारी ने कमान संभाल ली है। इसलिए उम्मीदों के पिटारे में कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब का इंतजार बेसब्री से किया जा रहा है।
तेज धूप, भीषण गर्मी और भारी उमस के बीच शहर में फिलहाल मंडी की ही चर्चा है क्योंकि भारी आवक और बदहाल प्रांगण की वजह से पहला असर यातायात पर देखा जा रहा है। हर वर्ग परेशान है, इस बदहाली को देखकर। कार्यबल की भारी कमी के बीच, नए यातायात प्रभारी की तैनाती से उम्मीद की किरण तो नजर आ रही है लेकिन हम नही सुधरेंगे की तर्ज पर चल रहे इस शहर की ओर से मिल रही चुनौती से पार पाना आसान नही है। क्योंकि कुछ निश्चित जगह बेहद ढीठ हो चुके हैं।
बेचारा जयस्तंभ
मैं जयस्तंभ हूं। दिन में दुकानदारी करने वालों की वाहन की रखवाली करना है।शाम ढलने के बाद मेरे चारों ओर गुपचुप, चना,मूंगफली, आइसक्रीम की दुकानें देर रात तक मुझे घेर कर रखतीं हैं। यह काम पूरा होने के बाद हर किनारे को छूकर खड़ी होने वाली कार मुझे घेरी रहतीं हैं।खुली हवा मे सांस लेने का मुझे भी हक है। क्या यह मुझे मिलेगी ?
कब मिलेगी मुक्ति
सिविल हास्पिटल से रामसप्ताह चौक।बीच में आते हैं वे हिस्से, जहां कई तरह के व्यवसाय संचालित होते हैं। यहां खड़े बेतरतीब वाहन और ठेला-खोमचा से इस मार्ग की हालत जितनी दयनीय है, उतना शायद कोई और क्षेत्र नही होगा। सड़क पर ही वर्कशॉप, कूलर, पंखा, फर्नीचर बेचने वाली संस्थानों ने जैसे दृश्य बना रखे हैं वह भी ट्रेफिक पुलिस के लिए चुनौती ही है।
फिलहाल यहां जरूरत
सी एस ई बी कार्यालय से लेकर नया बस स्टैंड। शहर से बाहर यातायात के लिए बनी यह सड़क इस समय सबसे ज्यादा दबाव में हैं। कारण है कृषि उपज मंडी की बदहाल व्यवस्था। सुबह से लेकर देर रात तक खड़ी भारी वाहन, इंच-दर-इंच सरकती है। रबी फसल की आवक जिस मात्रा में हो रही है उसके बाद यह सड़क भारी दबाव में हैं। फौरी राहत के इंतजाम नाकाफी ही सिद्ध हो रहे हैं।
हम नहीं सुधरेंगे
रामसप्ताह, गोविन्द चौक, हटरी बाजार, सदर बाजार, बस स्टैंड चौक, ये घिसे-पिटे ऐसे नाम हैं जिनका रवैय्या पूरी तरह हम नहीं सुधरेंगे वाला ही है क्योंकि आधी सड़क पर इनकी प्रदर्शन सामग्रियों का कब्जा है। घर और संस्थान का वेस्ट सड़क पर लाकर फेंक देना आदत बन चुकी है, तो बेतरतीब वाहनों को खड़ा करना एक तरह से अधिकार समझा जा चुका है।