जनप्रतिनिधियों ने भी बनाई दूरी

भाटापारा। सेंट्रल पार्किंग जैसी व्यवस्था नहीं है लेकिन जयस्तंभ का क्षेत्र, गवाह है कि हमने अपनी मर्जी के मुताबिक व्यवस्था बना ली है। रोकेगा कौन? जैसी मुद्रा में भवन निर्माण की सामग्री सड़क पर ही रख दी जा रहीं हैं। नालियां तो जाम हो ही रहीं हैं, आवागमन भी बाधित हो रहा है। रही बात सॉलि़ड वेस्ट मैनेजमेंट की तो यह कैसी होगी ? किसी भी मार्ग पर चलकर जानी जा सकती है।

मंडी रोड जाम। इसी बहाने चलिए, चलते हैं शहर की परिक्रमा करने। जिसमें कई सारी गलतियां दिखाई देंगी। गलतियों के लिए हम तो जिम्मेदार हैं हीं, वह सरकारी एजेंसियां भी बराबर की हिस्सेदारी रखतीं हैं जिन पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी है। आम समस्या है नालियों का जाम होना। सामान्य है यातायात का बाधित होना। जब यह है तो वायु प्रदूषण स्वमेव महसूस किया जा सकता है। रही बात ध्वनि प्रदूषण की, तो इस पर रोक की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। लिहाजा भरपूर और तेज आवाज में चलाए जा रहे हैं डीजे और साउंड सिस्टम।

मेरिट में यह

नगर पालिका परिषद। मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी इस पर है। नालियां जाम, सड़क पर फैली भवन निर्माण सामग्री। आवाजाही को बाधित करने वाली प्रदर्शन सामग्रियों को लेकर कभी इसने गंभीरता दिखाई होगी, यह कभी देखा नहीं गया। मंडी रोड का दृश्य, प्रमाण है, जहां ऐसे नजारे किसी भी समय देखे जा सकते हैं। कईहा तालाब से निकली गाद, ऐसे ही सड़क पर फैलती रही, लेकिन कानों में जूं तक नहीं रेंगी। सड़कों पर कचरा फेंकने पर भी इसने कोई कार्यवाही कभी नहीं की।

मेरी मर्जी

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार झा ने अपने पिछले प्रवास में संकेत दिए थे कि स्पीड बाइकर्स पर कार्रवाई की जाएगी। कानून व्यवस्था बनी रहे, उसके लिए सारे उपाय किए जाएंगे। पैदल मार्च भी योजना का हिस्सा थी, लेकिन ये योजनाएं फील्ड में कब दिखाई देंगी ? बड़ा सवाल इसलिए है क्योंकि यातायात बाधित होता, हर रोज देखा जा रहा है। ऐसी स्थितियों और अपराधों पर अंकुश कैसे लगाया जा सकेगा ? सहज ही जानी जा सकती है।

हम नहीं सुधरेंगे

अनुविभागीय अधिकारी, जनपद और लोक निर्माण यह तीन, ऐसे विभाग हैं जिन पर सुविधाएं देने और निगरानी की जिम्मेदारी है लेकिन कभी इन्होंने कार्यालय के बाहर निकलकर मैदानी हालत का जायजा लिया होगा, यह कभी देखा और सुना नहीं गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट मुलाकात के लिए तेज धूप में निकल रहे हैं। कार्यवाही भी हो रही है लेकिन अपने शहर के अफसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। मत पूछिए, कब मिलेंगे?

हम हैं राजकुमार

पक्ष और विपक्ष पूरी तरह इस परिदृश्य से ओझल हैं। उपस्थिति, समस्याओं से सरोकार रखने की जगह, अखबारों में तस्वीर और नाम छपवाने तक ही नजर आ रही है ।वैसे भी, अपने शहर के जनप्रतिनिधियों की भूमिका में विशेष परिवर्तन नहीं आया है। तब भी चुप थे, अब भी चुप हैं। ऐसे में अपने स्तर पर समस्या सुलझाने के प्रयास किए जा रहे हैं।