रियायत को लेकर उठ रहे सवाल
भाटापारा। रेलवे स्टेशन से हटरी बाजार और आजाद चौक से रामलीला मैदान तक पहुंचने वाली सड़क। उम्मीद मत कीजिए कि यहां, जब- तब आकर खड़ी हो जाने वाली, भारी वाहनों पर कभी कोई कार्रवाई होगी। वजह यह है क्योंकि यह दोनों क्षेत्र रसूखदारों के हैं। इसलिए इन्हें कार्रवाई से रियायत दी जा चुकी है।
तेजी से विस्तार लेता शहर, अब दुकानों के शहर के रूप में बदल रहा है। रिहायशी इलाके तक, नहीं छोड़े जा रहे हैं। इसलिए आसान आवाजाही अब वैसी नहीं, जैसी पहले हुआ करती थी। जनदर्शन में समस्याएं सुनी जा रही है, हल भी हो रहे हैं, लेकिन इन दोनों क्षेत्र में बसने वालों ने मौन साध रखा है क्योंकि यहां प्रभावशाली और रसूखदारों के नियम चलते हैं, प्रशासन का नहीं।
दृश्य एक
हमेशा चर्चा में रहने वाला स्टेशन से हटरी बाजार मार्ग, एक बार फिर चर्चा में है। यातायात सुगम बनाने के ध्येय से चल रही कार्रवाई को देखकर छोटी सी उम्मीद है कि यह क्षेत्र भी नजर में आएगा। उम्मीद, छोटी इसलिए है क्योंकि प्रभावी कार्यवाही से अब तक, यह बचता या बचाया जाता रहा है। दोनों किनारों पर नारियल, आलू, प्याज, शक्कर, तेल और गुड़ के साथ उर्वरक खाली कर रही भारी वाहनें कभी भी देखी जा सकती हैं। इसलिए आवाजाही कभी भी आसान नहीं है।
दृश्य दो
आजाद चौक से रामलीला मैदान पहुंचने वाली सीधी सड़क भी भारी वाहनों के घेरे में आ चुकी है। खुल चुकी और खुल रहीं संस्थानों के लिए सामान लाने वाले भारी वाहन, इस मार्ग पर भी दिखाई देते हैं। अस्पताल और स्कूल जाने के लिए यह सबसे आसान मार्ग है। होना तो यह था कि इस सड़क को भारी वाहनों के लिए नो-एंट्री घोषित किया जाता लेकिन रसूखदारों ने दिखाया दम, तो सभी ने चुप्पी साध ली। इसलिए अब यह सड़क, पूरी तरह ऐसे हाथों में आ चुकी है, जिनको सामाजिक सरोकारों से लेना-देना नहीं है।
और भी हैं ऐसे दृश्य
गोविंद चौक से बस स्टैंड मार्ग। इसे भी जोड़ लीजिए क्योंकि सड़क पर उतर आने लगीं हैं यहां की भी दुकानें। हटरी बाजार का नाम इसलिए लिया जा सकता है क्योंकि यहां की सड़क, पूरी तरह बेतरतीब दुकानों और हाथ ठेलों के कब्जे में हैं। बस स्टैंड पहले से काफी हद तक सुधरा हुआ नजर आता है, लेकिन शाम को यह अपने पुराने स्वरूप में लौट आता है।