सप्ताह भर से मंडी प्रांगण में इकाइयों की खरीदी बंद
किसानों के सामने गहराया पूंजी का संकट
भाटापारा। परेशानी भरा सप्ताह पूरा। कामकाज का अंतिम दिन भी कृषि उपज मंडी में सामान्य नहीं हो पाया। मंडी फीस में वृद्धि के बाद से चालू, यह गतिरोध उन किसानों के सामने आकर खड़ा हो चुका है जिन्हें रकम की फौरन जरूरत है। मंडी प्रबंधन अपने स्तर पर प्रयास तो जारी रखे हुए है, लेकिन सफलता दूर की कौड़ी लग रही है।
रबी फसल की कटाई और मिसाई के बाद फसलों की आवक जोर लेने को ही थी कि ऐन सीजन के समय मंडी फीस में इजाफा ने उन किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है, जिन्होंने उपज बिकने के बाद मिलने वाली रकम से जरूरी खर्चों का इंतजाम कर पाने का सपना देखा था। सरकार और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के बीच चर्चा चल तो रही है, लेकिन सार्थक परिणाम का इंतजार अब भारी पड़ने लगा है।
इसलिए खरीदी बंद
30 नवंबर को कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ कमलप्रीत सिंह के हस्ताक्षर से जारी आदेश के मुताबिक राज्य के बाहर या राज्य के भीतर से मंडी क्षेत्र में लाई गई अधिसूचित कृषि उपज की कुल कीमत के प्रति 100 रुपए पर 3 रुपए मंडी फीस और 2 रुपए कृषक कल्याण कोष में देना होगा। धान को छोड़कर अन्य कृषि उपज के लिए यह राशि 1 रुपए और 50 पैसे क्रमशः मंडी फीस और कृषक कल्याण कोष के लिए लिया जाएगा। नया नियम 1 दिसंबर से प्रभावी माना जाएगा।
संकट में आए किसान
आदेश को लेकर खरीदी से खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के हाथ खींच लेने के बाद ऐसे किसान, सबसे ज्यादा संकट में आ चुके हैं, जो धान की सुगंधित किस्मों की फसल लेते हैं। फसल नहीं बिकने की स्थिति में ऐसे किसानों को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए रकम की व्यवस्था, उधार लेकर करनी पड़ रही है या फिर ब्याज पर पैसे लेकर पूरा कर रहे है।
भंडारण हो रहा कम
इधर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां भी चिंता में आने लगीं हैं क्योंकि आपातकालीन परिस्थितियों के लिए रखा गया भंडारण अब कम होता जा रहा है। इधर बाजार की मांग बढ़त लेती नजर आती है। ऐसे में नया आदेश, इकाइयों और बाजार में निरंतर आपूर्ति में बाधा बन रहा है। पूंजी का संकट भी सामने आ रहा है, ऐसे में गतिरोध जल्द खत्म नहीं किया गया तो इकाइयों के सामने अस्तित्व का संकट आ सकता है।
ये भी हो रहे हताश
मंडी अभिकर्ता याने किसान और इकाईयों के बीच सेतु का काम करने वाला बड़ा वर्ग। मंडी संचालन की यह मजबूत कड़ी भी परेशान और हताश होने लगी है क्योंकि पूंजी संकट तेजी से गहरा रहा है। यह इसलिए क्योंकि किसान अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए इसी से मदद की आस में है। क्षमता के अनुसार यह काम भी किया जा रहा है।