पोहा यूनिटों के सामने दोतरफा संकट
भाटापारा। घटती आवक। प्रतिस्पर्धा के बीच तेज कीमतों में लिवाली की मजबूरी। यह ऐसा दोतरफा संकट है, जिसका सामना अब पोहा मिलों को करना पड़ रहा है। रही -सही कसर पोहा की कमजोर मांग पूरा कर रही है।
ऋतु परिवर्तन के दौर में पोहा की मांग बढ़नी चाहिए थी लेकिन स्थिर मांग ने पोहा मिलों की चिंता बढ़ा दी है। इधर समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी चालू होने से कृषि उपज मंडी में पोहा क्वालिटी के धान की आवक तेजी से कम होने लगी है। ऐसे में रोजमर्रा की जरूरत के लिए खरीदी पर ज्यादा पूंजी लगानी पड़ रही है। इधर पोहा में हल्की तेजी तो आ चुकी है लेकिन बाजार को यह तेजी रास नहीं आ रही है। इसलिए मिलों के सामने अस्तित्व का संकट आकर खड़ा हो चुका है।
रोजाना की जरूरत पर ज्यादा पूंजी
पोहा मिलों के सामने संकट यह आया है कि रोजाना की जरूरत के लिए, की जा रही खरीदी पर अब ज्यादा पूंजी लगानी पड़ रही है क्योंकि कमजोर आवक के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी है और इसी की वजह से तेज होते भाव में धान की खरीदी करनी पड़ रही है।
उपभोक्ता मांग स्थिर
छत्तीसगढ़ के पोहा के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश सबसे बड़े उपभोक्ता राज्य हैं। सीजन के बावजूद इन राज्यों से भी मांग अपेक्षाकृत वैसी नहीं निकल रही है जैसी होनी चाहिए। यहां पर भी प्रतिस्पर्धा के बीच छत्तीसगढ़ को कारोबार करना पड़ रहा है।
ऐसे हैं भाव
धान में आ रही तेजी के बाद, पोहा मोटा 2900 से 3200 रुपए क्विंटल और पोहा बारीक 3200 से 3500 रुपए क्विंटल पर पहुंच चुका है। सीजन के बावजूद पोहा की कीमतों में स्थिरता की धारणा बनने लगी है। यही स्थिति यूनिटों को चिंता में डाल रही है