रतनपुर महामाया देवी मंदिर के गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर है शिलालेख

बिलासपुर। छह सौ साल पहले पाली लिपि में उकेरी गई इबारत जो बाद की नई पीढ़ी के लिए किस्सा गोई, रहस्य और रोमांच का विषय था, का, खुलासा कर इसका अनुवाद कर ऐतिहासिक महत्व के मां महामाया मंदिर में अंकित कर दिया गया हैं । इससे रतनपुर राज में छत्तीसगढ़ के गौरवशाली कल्चुरी वैभव की पुष्टि हो रही है।


छत्तीसगढ़ में हैयहैवंशी कल्चुरी राजाओं की प्राचीनतम राजधानी रतनपुर स्थित सिद्ध शक्ति पीठ माँ महामाया मंदिर के गर्भ गृह के प्रवेशद्वार पर पाली लिपि में उत्कीर्ण दो शिलालेख का हिंदी संस्कृत व अंग्रेजी में अनुवाद पुरातत्व वेत्ता राहुल कुमार सिंह ने किया है। अनुवाद को दर्शनार्थियों के लिए मंदिर परिसर में प्रदर्शित किया गया है।

ऐतिहासिक महत्व के मां महामाया देवी मंदिर के गर्भगृह निर्माण 11 वीं शताब्दी में होना माना जाता है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर दो शिलालेख हैं इसमें पाली लिपि में उकेरी गई इबारत अब तक लोगों के लिए रहस्य और कौतुहल का विषय बना हुआ था। इसे पढ़ और समझ लेने का दावा पुरातत्व वेत्ता राहुल सिंह ने कर इसका हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में अनुवाद लिपिबद्ध कर श्रीसिद्ध शक्तिपीठ महामाया मंदिर देवी ट्रस्ट को उपलब्ध कराया है । मंदिर परिसर में प्रदर्शित शिलालेख के अनुवाद के मुताबिक मंदिर के मंडप का जीर्णोद्धार राजा वाहरेन्द्र ने विक्रम संवत 1552 यानी सन 1495 में कराया है। इसमें जीर्णोद्धार करने वाले कारीगर का नाम छीतकु व उसके छोटे भाई मांडन की विशेषताओं को अंकित किया गया है। शिलालेख के अनुवाद के मुताबिक तत्कालीन कल्चुरी राजा वाहरेन्द्र की सेना को एक हजार घोड़ों और 60 हाथियों से शुसज्जित, आग से ज्यादा तेजस्वी और युद्ध में शत्रुओं के लिए विनाशक बताया गया है। वही इसमें नगरपति गोविन्द का जिक्र है, जो सभी जीवों के रक्षक और राज्य के सभी दायित्वों के क्षमतावान भारसा़धक बताएं गए हैं

प्रथम शिला

  1. श्री मद्रत्नपुरं पुरंदरपुरं देवैर्नरैर्दुर्लभं तत्रास्ति क्षितिपालनैकनृपतिः श्री
  2. वाहरेंद्रः स्वयम्। तत्तत्रैव गजेंद्रषष्टि गुडितमेकं सहस्त्रं हयानाम् संग्रामे रि-
  3. पुमर्दनं नरीविषमं वह्नेश्च तेजाजोधिकम् ।।1।। श्रीमान्वाहररायस्य सर्वकार्ये-
  4. षु सेवकः। तत्ऱास्ति(?) नाम्ना गोविदों रत्नपुर प्रजाधिपः ।।2।। सर्वजीवदयापालः सा
  5. मिती राजभारकः। कार्याकार्यसमर्थोयं गोविंदो नाम विश्रुतः।।3।।

अनुवाद

  1. पुरंदरों की नगरी रत्नपुर, देवताओं और मनुष्यों के लिए भी दुर्गम है। पृथ्वी की रक्षा में अप्रतिम राजा वाहरेन्द्र वहां स्वयं निवास करते हैं। इसी स्थान पर 1000 अश्व के साथ 60 गज भी हैं, जो अग्नि से भी अधिक तेजस्वी और युद्ध में शत्रुओं के विनाशक हैं।
  2. यहां गोविन्द नामक रत्नपुर के नगरपति हैं, जो राजा वाहर के प्रत्येक कार्यों में सेवक हैं।
  3. अपनी सहृदयता के लिए ज्ञात गोविन्द सभी जीवों के रक्षक हें तथा अपने स्वामी के राज्य के सभी दायित्वों के भारसाधक हैं और जो निष्पादन या निरूद्ध के क्षमतावान हैं।

द्वितीय शिला

  1. ओम्। श्रीविश्वकर्मणे नमः।। हृदयं च दयाधर्म्मः।। कोकासवंशदीपकः।। शिल्पशास्त्रेषु
  2. विख्यातः।। छीतकुः सूत्रधारिणाम्।।1।। देवगुरूप्रसादेन।। पंचविद्यामहोदधिः।। रेखना
  3. रायणो वापि।। गुणवान्सत्यवाक्तथा।।2।। काष्ठपाषाणके चैव।। कनकेपि च ली
  4. लया।। यंत्रविद्या महाविद्या।। छीतकोः सूत्रधारिणः।।3।। वंकत्रीवंकवादनं(?)।।
  5. वल्लीपत्रादिकैः नरै?।। त्रिताल सप्ततालं च।। छीतकु सूत्रधारिणः।।4।। विद्
  6. पतिश्च गभीरः।। हृदयं केशवे वसेत्। मन्मथः सुतः कर्ता च।। छीतकुः सूत्रधारकः
  7. ।।5।। उपांगरूपवादी च।। काम सारगृहे सदा।। शास्त्रजपी त्रिभक्तश्च।। मांडनो
  8. लघुबांधवः।।6।। ब्रह्मभक्तः सर्वगुणः।। ज्योति शास्त्रसमन्वितः।। विश्वकर्म्म
  9. प्रमादेन।। मांडने हि मिलिष्यते।।7।। दित्यनो रूपकारश्च? विद्यासर्वगुणे
  10. षु च।। भ्रातृभक्तः सुशीलश्च।। लेखदासः प्रषस्यते।।8।। शुभमस्तु सर्वदा।
  11. श्री संवत् 1552 समये।

अनुवाद
ओम! श्री विश्वकर्मा को नमस्कार!

  1. सूत्रधारों में कोकास कुलदीपक छीतकु शिल्पशास्त्र के लिए ज्ञात है तथा जिनका हृदय दया से परिपूर्ण है।
  2. देवताओं और गुरूओं के प्रसाद से वह पंचविद्याओं का सागर, रेखाशास्त्र का ज्ञाता, गुणवान और सत्यवादी है।
  3. काष्ठ, पाषाण और सुवर्ण शिल्प भी सूत्रधार छीतकु के लिए कार्य-सुगम है। विज्ञानों में विज्ञान, यांत्रिकी विद्या का वह धारक है।
  4. सूत्रधार छीतकु वंक और त्रिवंक, लता पत्रादि तथा त्रिताल-सप्तताल का भी ज्ञाता है।
  5. मन्मथ का सुपुत्र सूत्रधार छीतकु विज्ञानों का आदर्श ज्ञाता है, जिसका चित्त केशव में रमता है।
  6. त्रयी के प्रति समर्पित उसका छोटा भाई मांडन शास्त्रों का अध्येता है।
  7. ब्राह्मणों के प्रति जिसके मन में भक्ति-भाव है। ज्योतिर्विद्या के साथ विश्वकर्मा की कृपा से मांडन सर्वगुण सम्पन्न है।
  8. अपने भाई के प्रति समर्पित व सुशील, उत्कीर्णक रूपकर्मी दित्यन विज्ञान व गुणों के लिए प्रशंसित है।
    सदा शुभ हो
    श्री संवत् 1552