प्वाइंटर- इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और सुपारी एवं मसाला अनुसंधान निदेशालय कालीकट, केरल का अभिनव प्रयास

बिलासपुर। सब कुछ सही रहा तो अपने जिले का कोटा विकासखंड प्रदेश में हल्दी की व्यावसायिक खेती करने वाला पहला विकासखंड होगा। इस विकासखंड के 23 गांव में हल्दी की नौ विकसित प्रजातियों के पौधों का रोपण किया गया है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर, सुपारी एवं मसाला अनुसंधान विकास निदेशालय, कालीकट, केरल और बी टी सी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन के संयुक्त प्रयास और मार्गदर्शन में पहली बार, कोटा विकास खंड के 23 ग्राम के 25 हेक्टेयर कृषि भूमि में इन दिनों हल्दी के पौधों की हरियाली दिखाई दे रही है। परिपक्वता अवधि पूरी करने के बाद, जब इसकी फसल बाजार पहुंचेगी, तब उन किसानों को भी मसाला खेती के लिए स्वतः आना होगा, जो हमेशा नगदी फसल लेने की चाह रखते हैं।


इसलिए मसाला की खेती

छत्तीसगढ़ में हल्दी के लिए हमेशा से आंध्र प्रदेश के गुंटूर पर निर्भरता रही है। यहां की फसल को हमेशा से अच्छी कीमत मिलती है। इसके अलावा बीते कुछ सालों से जिले के किसानों में नगदी फसल की ओर रुझान बढ़ा है। आय बढ़ाने के लिहाज से भी मसाला फसल तेजी से विस्तार ले रही है। इसलिए कोटा विकासखंड के ऐसे 23 गांव का चयन किया गया, जहां की भूमि, हल्दी की फसल के लिए उपयुक्त है।


प्रशिक्षण, प्रसंस्करण और विपणन

वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम, चयनित गांवों के किसानों को प्रजाति चयन, रोपण और फसल लेने के तरीके तो समझा ही रही है, साथ ही तैयार फसल का प्रसंस्करण कैसे किया जाना है, इसकी भी जानकारी दे रही है। यह फसल किस तरह उपभोक्ताओं तक पहुंचे, इसके लिए विपणन के तरीके भी समझाए जा रहे हैं।


23 गांव, 25 हेक्टेयर

कोटा विकासखंड के आदिवासी बहुल ग्राम झिंगटपुर, शिवतराई, सरायपाली, केकराडीह और ओरापानी सहित 23 अन्य गांव के 25 हेक्टेयर कृषि भूमि पर हल्दी के पौधे लगाए गए हैं। तैयार फसल के लिए बाजार की जानकारी के साथ, श्रमवीर जैविक किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति का भी गठन कर लिया गया है ताकि संकट के दिनों में संस्था के द्वारा फसल बेची जा सके।


मिल रहा मार्गदर्शन

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और बी टी सी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन के साथ कालीकट के सुपारी एवं मसाला अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों का सहयोग, इस परियोजना को सफल बनाने के लिए मिल रहा है। डीन डॉ. आर. के. एस. तिवारी के अलावा डॉ संजय वर्मा व अन्य वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन समय -समय पर मिल रहा है।