बुवाई और नर्सरी की तैयारी में पिछड़ चुके किसानों के लिए खुशखबरी
सतीश अग्रवाल
रायपुर। बोनी या नर्सरी में पिछड़ चुके किसानों के लिए खुशखबरी। चिंता दूर करने के लिए एक ऐसी विधि खेतों में पहुंचने के लिए तैयार है, जिसे ड्रम सीडर मशीन कहा जाता है। इसे चलाने के लिए ना डीजल लगेगा ना मशीन की जरूरत होगी। यह हाथ या पशुओं की मदद से चलाया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून का कभी विलंब से पहुंचना या समय से पहले प्रवेश कर जाना। यह दोनों स्थितियां किसानों के लिए हमेशा से परेशानी का कारण बनती रहीं हैं। जिसका सीधा और पहला असर बोनी और रोपाई के लिए नर्सरी की तैयारी पर पड़ता है। यह दोनों स्थितियां, पैसे और समय से जुड़ी हुई हैं लिहाजा लागत का बढ़ना जैसी प्रतिक्रिया सामने आती है।
जानिए ड्रम सीडर को
प्लास्टिक के चार या पांच ड्रम होते हैं। जिनमें 9 मिली मीटर आकार के छिद्र होते हैं। इन्हें लकड़ी के बेलन में बांधा जाता है। चलाने के लिए दो पहिए लगाए जाते हैं। खींचने के लिए एक हैंडल भी लगा होता है, इसे मानव या पशु के जरिए खींचा जा सकता है। अंकुरण की स्थिति में आ चुके धान के बीज डाले जाने के बाद बोनी का काम आसान हो जाता है।
खरपतवार नियंत्रण में आसानी
ड्रम सीडर में बोनी किए जाने पर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी एक समान होती है। लिहाजा इस विधि से ली गई फसल के बीच निकल आने वाली खरपतवार के नियंत्रण में सुविधा होती है। इसके अलावा उर्वरक और कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के दौरान पौधों को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है।
होते हैं यह लाभ
ड्रम सीडर चूंकि हाथ से चलाया जाने वाला यंत्र है, इसलिए डीजल के खर्च से छुटकारा मिलता है। कतार और पौधों के बीच बनने वाली मानक दूरी, पौधों को प्राकृतिक बढ़त देती है। जिससे कंसे ज्यादा निकलते हैं और बालियों की संख्या भी अपेक्षाकृत ज्यादा मिलती है। समय पर किए जा सकने वाले इस काम में सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि फसल 10 से 15 दिन पहले तैयार हो जाती है और दूसरी बोनी के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
खर्च और समय की बचत
बोनी या नर्सरी में पिछड़ चुके किसानों के लिए ड्रम सीडर बेहतर उपाय है। यह खर्च और समय के साथ धान की बोनी में लागत कम करने में सहायक है।
- डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर