बिलासपुर। मैदानों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा जा रहा है तापमान। 2 दिन तक बन रही यह स्थिति हीट वेव को बढ़ा रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने हीट एक्शन प्लान की तैयारी का अलर्ट जारी कर दिया है।
जलवायु परिवर्तन के दौर में अब चरम मौसमी घटनाएं, आम हो चलीं हैं। सतर्कता और दीर्घकालिक रणनीतियों को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि मई से जुलाई के बीच भीषण गर्मी और हीट वेव की स्थितियां बन चुकीं हैं। आशंका है कि इस बरस लू के दिनों में वृद्धि हो सकती है ।
पहली बार पहाड़ी क्षेत्रों में
मैदानी क्षेत्र में तापमान तो सामान्य से अधिक ही है लेकिन पहली बार पहाड़ी क्षेत्र में तापमान का स्तर 30 से 33 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचा हुआ है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इसे न केवल असामान्य माना हुआ है बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि यदि यह स्थिति लगातार दो दिन तक बनी रहेगी, तो पहली बार पहाड़ी क्षेत्रों को लू के थपेड़ों का सामना करना पड़ेगा।
भीषण गर्मी की आशंका
मई, जून और जुलाई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इन तीन महीनों को विशेष रूप से भीषण गर्मी वाला महीना माना है। इन महीनों में हीट वेव के दिन भी बढ़ने की प्रबल आशंका बलवती है। यह स्थिति स्वास्थ्य, कृषि और जल संसाधनों पर गहरा असर डालने सकती है। संवेदनशील जनसंख्या समूह बुजुर्ग, बच्चों और श्रमिक विशेष जोखिम वाले होंगे। इन तीनों समूह को सतर्कता अधिक बरतनी होगी।
बने हीट एक्शन प्लान
अलर्ट के बाद राज्यों ने जो हिट एक्शन प्लांस बनाए हैं, वह नाकाफी है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अग्रिम चेतावनी प्रणाली को सबसे कमजोर माना है। स्वास्थ्य सेवाएं भी चुस्त नहीं हैं, तो जागरूकता अभियान को लेकर गंभीर नहीं है राज्य सरकारें। जल और बिजली की आपूर्ति भले ही ध्यान में हों लेकिन कसावट की आवश्यकता यहां भी हैं। इसलिए सतर्कता और दीर्घकालिक रणनीतियां अनिवार्य हैं।
दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता
गर्मी और लू जैसी चुनौतियों का सामना केवल तात्कालिक उपायों से नहीं किया जा सकता। इसके लिए कृषि, जल प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाओं में समन्वित और दीर्घकालिक रणनीतियाँ तैयार करना आवश्यक है। तापमान में हो रही असामान्य वृद्धि खाद्य सुरक्षा और फसल उत्पादन को भी प्रभावित कर सकती है। इसलिए किसानों को फसल चक्र में बदलाव करने और जल संरक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना अब बेहद जरूरी हो गया है।
डॉ. दिनेश पांडे, साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर