बिलासपुर। कालियां गलने लगीं हैं। जड़ें सड़न की अवस्था में आ चुकीं हैं क्योंकि भारी बारिश की वजह से जड़ों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच रहा है।
गेंदा, गुलाब, मोंगरा, डहेलिया, जरबेरा और ग्लेडियोलस जैसे फूलों की खरीदी के लिए अब लगभग दोगुनी कीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंकि कलियां गिर जा रहीं हैं। तैयार पुष्प की पंखुड़ियां पानी के मार से बिखर रहीं हैं।

ऑक्सीजन नहीं
लगातार बारिश की वजह से जल-भराव लगातार बढ़ रहा है। इससे पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच रहा है। परिणामस्वरूप कलियां कमजोर होने लगीं हैं, तो तैयार पुष्पों की पंखुड़ियां बिखरने लगीं हैं। यह स्थिति यदि आगे भी बनी रही, तो पौधों की अकाल मौत तय मानी जा रही है क्योंकि कीट प्रकोप का खतरा भी दस्तक देता नजर आ रहा है।खो रहे मौसमीय तालमेल

खो रहे मौसमीय तालमेल
लगातार बारिश की वजह से परागण करने वाले कीट पौधों से दूर हो रहे हैं और करीब आ रहे हैं फफूंद जनित रोग और कीटाणु जो परागण गतिविधियों में कमी का भरपूर फायदा उठाएंगे। इन्हें पत्तियों, तनों और फूलों में फफूंद जनित रोग के रूप में देखा जाएगा। यह कमजोर फूल उत्पादन और तेज कीमत जैसी स्थिति लेकर बाजार पहुंचेंगी।खतरे में यह

खतरे में यह
गेंदा, गुलाब, मोंगरा, डहेलिया, जरबेरा और ग्लेडियोलस जैसी प्रजातियों पर मौसम का यह रूप गहरे तक असर डालने वाला माना जा रहा है क्योंकि जीवन चक्र असंतुलन के दौर में आ चुका है। यह स्थिति मौसम के साथ तालमेल बिठाने की राह में बड़ी बाधा बन रही है। असर मांग के दिनों में कमजोर उत्पादन और तेज कीमत के रूप में देखा जाएगा।
जल निकासी की समुचित व्यवस्था आवश्यक
भारी वर्षा के कारण जल-भराव की स्थिति में पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन का प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे जड़ सड़न, कलियों का गिरना और पुष्पों की गुणवत्ता में गिरावट जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। लगातार गीले वातावरण में फफूंद और कीट रोगों की आशंका बढ़ जाती है, जो फूलों की संवेदनशील प्रजातियों—जैसे गेंदा, गुलाब, जरबेरा और डहेलिया—के लिए अत्यंत हानिकारक है। जल निकासी की समुचित व्यवस्था, जैविक कवकनाशकों का छिड़काव और नमी प्रबंधन जैसी तकनीकों को अपनाकर इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर