आवक कम, बढ़ जाएगी होली के रंगों की कीमत



बिलासपुर। इन्हीं दिनों में  आते हैं पलाश के फूल, लेकिन नहीं आ रहे हैं। इसलिए 1100 से 1200 रुपए क्विंटल जैसी ऊंचाई पर पहुंचा हुआ है। बढ़ सकती है कीमत क्योंकि रंगोत्सव होली की तैयारी रंग बनाने वाली इकाइयों ने चालू कर दी है।

बढ़ रही है उपभोक्ता मांग लेकिन घट रहे हैं परिजन यानी पेड़ों की संख्या। दोतरफा संकट का सामना कर रहा है पलाश। फौरी उपाय के तहत उसने अपनी कीमत बढ़ा दी है। पलाश को वानिकी वैज्ञानिकों से ऐसे उपाय की आस है, जो आबादी बढ़ने में मदद कर सकते हैं।

इसलिए तेज

आबादी क्षेत्र का विस्तार पलाश के वृक्षों के विनाश की बड़ी वजह बने हुए हैं। संरक्षण और संवर्धन को लेकर लापरवाही समस्या को और भी ज्यादा बढ़ा रही है। पौधारोपण संभव नहीं क्योंकि प्राकृतिक रूप से उगते और तैयार होते हैं पलाश के वृक्ष। ऐसे में मांग के अनुरूप पलाश के फूलों की उपलब्धता बेहद कमजोर है। यही वजह है कि प्रति क्विंटल कीमत 1100 से 1200 रुपए पर पहुंची हुई है।

यह है वन क्षेत्र

प्रदेश के लगभग हर ग्रामीण क्षेत्र में नजर आते हैं पलाश के वृक्ष लेकिन गौरेला, पेंड्रा, मरवाही और मुंगेली के वन क्षेत्र टेसू के फूलों के स्वाभाविक आपूर्ति क्षेत्र माने जाते हैं। प्रदेश स्तर से निकलने वाली मांग में लगभग 75 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखते हैं यह सभी लेकिन बीते साल का भंडारण अभी तक नहीं पहुंचा है। लिहाजा शुरुआत के पहले ही भाव ने अनुमान से ज्यादा बढ़त ली हुई है।

घटते वृक्ष, बढ़ा रहे चिंता

पलाश के वनों का सिमटता दायरा फूलों की कमजोर आवक की वजह बन रही है। मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के प्रयास तभी सफल होंगे, जब संरक्षण और संवर्धन पर गंभीरता के साथ कोशिश की जाएगी।
– सुभाष अग्रवाल, एस पी इंडस्ट्रीज,रायपुर

ठोस संरक्षण उपाय आवश्यक

छत्तीसगढ़ के जंगलों में पलाश के वृक्षों का नष्ट होना चिंताजनक और गंभीर समस्या है। यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन को दर्शाता है, बल्कि स्थानीय जैवविविधता के लिए भी हानिकारक है। जंगलों में अनियंत्रित कटाई, बढ़ता अतिक्रमण और प्राकृतिक पुनरुत्पादन की कमजोरी इसे और खतरनाक बना रहे हैं। यदि ठोस संरक्षण उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या विनाशकारी हो सकती है। इसके संरक्षण के लिए व्यापक, वैज्ञानिक, और स्थायी रणनीतियों की आवश्यकता है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर