30. जनवरी.1948
गाँधी का महाप्रयाण:
“बाबा!..गांधी जी मारे गए!” कमली अंदर हवेली से ही पगली की तरह चिल्लाती है– “गांधी जी…!”…
तहसीलदार साहब अंदर हवेली की ओर दौड़ते हैं।….रेडियो सेट ले आते हैं… एस पी साहब जल्दी जल्दी मीटर ठीक करते हैं ।…“चारों ओर एक… एक मनहूस अंधेरा छाया हुआ है… हमारी आंखों के आगे अंधेरा है, दिल में अंधेरा है।… ऐसे मौके पर हम किन लफ्जों में, कै…से, किन शब्दों में आपको ढाढ़स बधार्ऐं। गम के बादल में सारा मुल्क गर्क है।…. एक पागल ने बापू के हत्या कर डाली। जाहिर है, पागल के सिवा कोई ऐसा काम नहीं कर सकता। अब हमें अपने गम और गुस्से को दबाकर सोचना है….।”
“ नेहरू जी बोल रहे थे सायद!”
“ नेहरू जी! जमाहिरलाल बोल रहे थे! बीच में एक जगह गला एक दम भर गया था ; लगा– रो रहे हैं।”
बेतार के खबर में क्या बोला? गांधीजी का हत्यारा पकड़ा जा चुका है? अरे! कैसे नहीं पकड़ावेगा भाई ! हाय रे पापी। साला…जरूर जंगली देश का आदमी होगा। हत्यारा!.. मराठा? यह कौन जात है भाई! मारा ढ़ा! अरे, बाभन ऐसा काम नहीं कर सकता, जरूर वह साला चांडाल होगा।
एस पी साहब हाथ जोड़कर कहते हैं, “भाइयों कहा सुना माफ करेंगे। .. हम अभी जाते हैं। आप लोग कल शाम को, नदी किनारे जल प्रवाह कीजिएगा।”
31 जनवरी 48 की रात। कमली सोचती है – सारा संसार एक ही महामानव के लिए रो रहा है।.. रेडियो पर गीता पाठ हो रहा है। लगता है, गीता के एक एक श्लोक की सीढ़ी महात्मा जी को ऊपर उठाए लिए जा रही है– ऊपर-ऊपर- और ऊपर!
अंधेरे में एक महा प्रकाश!.. आंखें चौधियां जाती हैं कमली की। महात्मा जी खिलखिला कर हंस पड़ते हैं– “रोती है क्यों माँ!…माँ रोती क्यों है?”
“मत रो बेटी!” माँ समझाती है।..कमली रेडियो की आवाज को और तेज कर देती हैं:
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।
दूसरे पहर को जुलूस निकला। बांस की एक रंथी बनाकर सजाई गई है– लाल, हरे, पीले कागजों से। एक ओर बलदेव जी ने कंधा दिया है, दूसरी और सुमरितदास, जिबेसर मोची और सकलदीप ने।…
टन टनाँग! घडीघंट बज उठता है
गांव के भकतिया लोगों ने समदाउन शुरू किया। समदाउन के पहली कड़ी ने सबके रोऐं को कलपा दिया, सबके दिल गम्हड़ उठे और आंखें छलछला आईं।
“आँ रे कांचे ही बांस के खाट रे खटोलना
आखैर मूँज के रहे डोर
चार समाजी मिली डोलिया उठाओल
लई चलाल जमुना के ओर ”
अब अपने को कोई अब नहीं संभाल सकता है। सब फफक-फफककर रो पड़ते हैं। जुलूस आगे को बढ़ रहा है। धीरे-धीरे सभी जुलूस में आकर मिल जाते हैं, रोते हुए चलते हैं। बूढ़े रोते हैं, बच्चे रोते हैं, जवान रो रहे हैं, औरतें रो रही हैं
मां रो रही हैं। भारतमाथा रो रही हैं।
रामदास हाथ में खँजड़ी लिए चुपचाप रो रहा है। उसी के पाप से महात्मा जी मारे गए हैं। उसने साधु के अखाड़े को भरस्ट किया है।
रमजू दास की स्त्री छाती पीट-पीटकर रो रही है। ठिठरा चमार की बारह साल की बेटी रो रही है– बाबा हो! … बाबू हो!
कमली रेडियो अगोर कर बैठी हुई है। उसकी आंखों से आंसू टप-टपकर कर गिर रहे हैं। मां आंचल से बेटी के आंसू पोंछती है और खुद रोती हैं, “ वह तो नर रूप धारण कर आए थे… लीला दिखाकर चले गए।
रेडियो से आंखों देखा हाल प्रसारित हो रहा है। “अब… चंदन की चिता तैयार है। बस अब कुछ क्षणों में… पश्चिम आकाश में सूर्य अपनी लाली बिखेर कर अस्त हो रहा है और इधर महामानव के चिता में अग्निशिखा…. धरती का सूरज अस्त हो रहा है। क्षिति जल पावक…. पांच तत्वों का पुतला…
जन्मबंधनविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यानामयम्..।
