कब तक प्रासंगिक रहेंगे परसाई

बरसों गुजरें हरिशंकर परसाई की व्यंग रचना “मुंडन” को।  इसकी प्रासंगिकता है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही। हम, हमारा समाज, राजनीति और ये बेशर्म व्यवस्था है कि बदलने को तैयार नहीं। कौन है इस व्यवस्था में, आज हमें क्यों बरसों बाद भी याद आएं हरिशंकर परसाई और उसकी रचना “मुंडन” ।
अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले की ये शर्मनाक घटना है। 18 सितंबर की शाम एक नाबालिग आरोपी ने मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। स्कूल से आकर मासूम बच्ची घर के बाहर खेल रही थी। इसी दौरान घूमाने के बहाने बच्ची को आरोपी किशोर घर से दूर ले गया। जहां आरोपी ने दरिंदगी की हदे पार कर दी। खून से लथपथ बच्ची किसी तरह घर लौटी। लहूलुहान बेटी की हालत देख कर परिजन भी सकते मे आ गए । दर्द से परेशान बेटी की हालत देख कर परिजन गांव में ही तीन डॉक्टरों के पास लेकर गए। घटना की गंभीरता को देखते हुए  कथित डॉक्टरों ने इलाज करने से इनकार कर दिया। पीड़ित बच्ची रात भर घर में दर्द से तड़पती रही। 19 सितंबर की सुबह परिजन बच्ची को लेकर कुरुद के सरकारी अस्पताल पहुंचे। घटना की सूचना पुलिस को भी दी गई। पुलिस ने एफआई आर दर्ज की। पुलिस ने परिजनों को किसी से कुछ भी कहने से मना कर दिया गया। परिजनों के मुताबिक बच्ची को तीन टाके लगाए गए।  तीन दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। छुट्टी देते समय डॉक्टर ने समस्या होने पर निजी अस्पताल ले जाकर बेहतर इलाज कराने की सलाह भी दी। घर में दवा के खत्म होने तक कुछ दिन बच्ची ठीक रही। दर्द के फिर बढ़ने पर परिजन बच्ची को लेकर निजी अस्पताल लेकर गए। जहां फिर डॉक्टर ने इलाज करने से इनकार कर दिया। आठ दिन बाद बच्ची फिर कुरुद के उसी सरकारी अस्पताल पहुंच गई, जहां नौ दिन तक बच्ची भर्ती रही। दर्द से राहत नहीं मिली।  डॉक्टर ने बच्ची का सोनोग्राफी कराने को कहा। आठ अक्टूबर को बेटी को लेकर मां, बस से जिला अस्पताल पहुंची। अस्पताल में सोनोग्राफी कराने के लिए किसी पुलिस कर्मी को साथ लाने को कहा गया। हताश मां और परिजन बच्ची को लेकर सोनोगाफी कराने निजी अस्पताल भी गए। वहां भी सोनोगाफी करने से साफ मना कर दिया गया। दिन भर धक्के खाने के बाद बच्ची के साथ परिजन बस से रात में ही कुरुद थाना लौटे। जहां डीएसपी मिले उन्होंने बच्ची को इलाज कराने का भरोसा दिलाया।  नौ अक्टूबर को डीएसपी ने सीएमएचओ को पत्र लिखा जिसके बाद जिला अस्पताल धमतरी में शाम को बच्ची को भर्ती कराया गया। इधर बेटी की बिगड़ती हालत देख कर मां की तबियत बिगड़ गई, उसे भी इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। नौ अक्टूबर को सीएमएचओ के दखल के बाद बच्ची को भर्ती किया गया। इसके बाद भी बच्ची को राहत नहीं मिली। 11 अक्टूबर को खबरें प्रकाशित होने पर प्रशासन हरकत में आया। राजनीति भी शुरू हो गई। माननीयों के मोबाइल घनघनाने लगे। आनन-फानन में पीड़ित बच्ची को एम्स रायपुर रेफर किया गया। लापरवाही की जांच के लिए जांच टीम बन गई है। मिर्ज़ा ग़ालिब भी कह गए हैं…आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक, कौन जिता है तेरे जुल्फों के सर होने तक।

जांच टीमों के रिपोर्टें तो बरसों पहले लिखी गई हरिशंकर परसाई की व्यंग रचना की तहरीर में है पढ़े ….
                             मुंडन


किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुंडन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुँघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक मुंडन हो गया था। सदस्यों में कानाफूसी हो रही थी कि इन्हें क्या हो गया है। अटकलें लगने लगीं। किसी ने कहा शायद सिर में जुएं हो गई हों। दूसरे ने कहा- शायद दिमाग में विचार भरने के लिए बालों का पर्दा अलग कर दिया हो। किसी और ने कहा शायद इनके परिवार में किसी की मौत हो गई। पर वे पहले की तरह प्रसन्न लग रहे थे। आखिर एक सदस्य ने पूछा अध्यक्ष महोदय ! क्या मैं जान सकता हूँ कि माननीय मंत्री महोदय के परिवार में क्या किसी की मृत्यु हो गई है? मंत्री ने जवाब दिया- नहीं। सदस्यों ने अटकल लगाई कि कहीं उन लोगों ने ही तो मंत्री का मुंडन नहीं कर दिया, जिनके खिलाफ वे बिल पेश करने का इरादा कर रहे थे। एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय ! क्या माननीय मंत्री को मालूम है कि उनका मुंडन हो गया है? यदि हाँ, तो क्या वे बताएँगे कि उनका मुंडन किसने कर दिया है? मंत्री ने संजीदगी से जवाब दिया मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुंडन हुआ है या नहीं! कई सदस्य चिल्लाए – हुआ है! सबको दिख रहा है। मंत्री ने कहा- सबको दिखने से कुछ नहीं होता। सरकार को दिखना चाहिए। सरकार इस बात की जाँच करेगी कि मेरा मुंडन हुआ है या नहीं। एक सदस्य ने कहा- इसकी जाँच अभी हो सकती है। मंत्री महोदय अपना हाथ सिर पर फेरकर देख लें। मंत्री ने जवाब दिया मैं अपना हाथ सिर पर फेरकर हर्गिज नहीं देखूँगा। सरकार इस मामले में जल्दबाजी नहीं करती। मगर मैं वायदा करता हूँ कि मेरी सरकार इस बात की विस्तृत जाँच करवाकर सारे तथ्य सदन के सामने पेश करेगी। सदस्य चिल्लाए इसकी जाँच की क्या जरूरत है? सिर आपका है और हाथ भी आपके हैं। अपने ही हाथ को सिर पर फेरने में मंत्री महोदय को क्या आपत्ति है?
मंत्री बोले- मैं सदस्यों से सहमत हूँ कि सिर मेरा है और हाथ भी मेरे हैं। मगर हमारे हाथ परंपराओं और नीतियों से सदस्य चिल्लाए इसकी जाँच की क्या जरूरत है? सिर आपका है और हाथ भी आपके हैं। अपने ही हाथ को सिर पर फेरने में मंत्री महोदय को क्या आपत्ति है? मंत्री बोले- मैं सदस्यों से सहमत हूँ कि सिर मेरा है और हाथ भी मेरे हैं। मगर हमारे हाथ परंपराओं और नीतियों से बँधे हैं। मैं अपने सिर पर हाथ फेरने के लिए स्वतंत्र नहीं हूँ। सरकार की एक नियमित कार्यप्रणाली होती है। विरोधी सदस्यों के दबाव में आकर मैं उस प्रणाली को भंग नहीं कर सकता। मैं सदन में इस संबंध में एक वक्तव्य दूँगा।
शाम को मंत्री महोदय ने सदन में वक्तव्य दिया अध्यक्ष महोदय ! सदन में ये प्रश्न उठाया गया कि मेरा मुंडन हुआ है या नहीं? यदि हुआ है तो किसने किया है? ये प्रश्न बहुत जटिल हैं। और इस पर सरकार जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं दे सकती। मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुंडन हुआ है या नहीं। जब तक जाँच पूरी न हो जाए, सरकार इस संबंध में कुछ नहीं कह सकती। हमारी सरकार तीन व्यक्तियों की एक जाँच समिति नियुक्त करती है, जो इस बात की जाँच करेगी। जाँच समिति की रिपोर्ट मैं सदन में पेश करूँगा। सदस्यों ने कहा- यह मामला कुतुब मीनार का नहीं जो सदियों जाँच के लिए खड़ी रहेगी। यह आपके बालों का मामला है, जो बढ़ते और कटने रहते हैं। इसका निर्णय तुरंत होना चाहिए। मंत्री ने जवाब दिया कुतुब मीनार से हमारे बालों की तुलना करके उनका अपमान करने का अधिकार सदस्यों को नहीं है। जहाँ तक मूल समस्या का संबंध है, सरकार जाँच के पहले कुछ नहीं कह सकती। जाँच समिति सालों जाँच करती रही। इधर मंत्री के सिर पर बाल बढ़ते रहे। एक दिन मंत्री ने जाँच समिति की रिपोर्ट सदन के सामने रख दी। जाँच समिति का निर्णय था कि मंत्री का मुंडन नहीं हुआ था। सत्ताधारी दल के सदस्यों ने इसका स्वागत हर्ष-ध्वनि से किया। सदन के दूसरे भाग से ‘शर्म-शर्म’ की आवाजें उठीं। एतराज उठे – यह एकदम झूठ है। मंत्री का मुंडन हुआ था। मंत्री मुस्कुराते हुए उठे और बोले यह आपका ख्याल हो सकता है। मगर प्रमाण तो चाहिए। आज भी अगर आप प्रमाण दे दें तो मैं आपकी बात मान लेता हूँ। ऐसा कहकर उन्होंने अपने घुँघराले बालों पर हाथ फेरा और सदन दूसरे मसले सुलझाने में व्यस्त हो गया।