300 से 600 रुपए किलो

बिलासपुर। तालाब लबालब। जलाशय पूर्ण भराव की ओर, उफन रहे बरसाती नाले। मछुआरों में दोगुनी खुशी इसलिए क्योंकि मछली जाल की कीमत बीते बरस जैसी ही है। इसलिए तीन माह बाद आने वाले सीजन की तैयारी मछुआरों ने चालू कर दी है।

फिलहाल मत्स्याखेट पर प्रतिबंध है। मछली बीज डाले जाने का काम चालू है। कीमत भले ही मछुआरों को अपेक्षाकृत ज्यादा देनी पड़ रही है लेकिन मछली जाल की ठहरी कीमत से बड़ी राहत मिल रही है। बारिश की स्थिति और जल भराव को देखते हुए बेहतर मछली उत्पादन की संभावना से जाल की खरीदी का पहला दौर चालू हो चुका है।


जल भराव पूर्णता की ओर

लघु, मध्यम और वृहद जलाशय में जल भराव पूर्णता की ओर है। तालाबों की सेहत भी लगभग सुधरने लगी है। नदियां उफान पर हैं, तो बरसाती नाले तट से ऊपर बह रहे हैं। मत्स्याखेट पर भले ही बंदिश लगी हुई हो लेकिन सीजन इस बार बेहतर जाएगा। यह सोच जाल बाजार तक मछुआरों को जाने के लिए बढ़ावा दे रही है। दिलचस्प बात यह कि प्लास्टिक और नायलॉन की कीमत में बढ़ोतरी के बाद भी इन दोनों से बनने वाला मछली जाल स्थिर है।
निकली खरीदी इसमें

बाजार और मछुआरों की भाषा में मच्छरदानी कहते हैं ऐसे मछली जाल को जिनसे छोटी मछलियां पकड़ी जाती हैं। जलाशय और तालाब फिलहाल प्रतिबंध के दायरे में हैं इसलिए मछुआरे बरसाती नालों से छोटी मछलियां पकड़ने के लिए ऐसी मच्छरदानी की खरीदी कर रहे हैं, जिनकी कीमत क्रयशक्ति के भीतर ही है। डिमांड को देखते हुए संस्थानें इसके लिए हर सप्ताह ऑर्डर दे रहीं हैं।


300 से 600 रुपए किलो

नायलॉन से बने मछली जाल हमेशा की तरह इस बार भी खूब मांग में है लेकिन पहली बार इसे चीन में बनी जाल से कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। इसके बाद भी मछुआरों का भरोसा नायलॉन के मछली जाल पर बना हुआ है। कीमत बीते साल जैसी याने 300 से 600 रुपए किलो पर स्थिर है। जलाशय और तालाब के लिए इसकी खरीदी मछुआरों ने चालू कर दी है।