पत्तियां देती हैं प्राकृतिक रेशा



बिलासपुर। सीसल। एक ऐसा पौधा, जिसकी पत्तियां देतीं हैं उच्च गुणवत्ता युक्त रेशा, जिनसे जल जहाज के लंगर बनते हैं। इतना ही नहीं सीसल को बंजर भूमि के सुधार में मजबूत सहायक माना गया है।

खेतकी, रामबांस, अमेरिकन ब्रूम जैसे नाम हैं। अपने यहां सीसल के नाम से पहचाना जाता है। पौधरोपण की लिस्ट से भले ही बाहर हो लेकिन गुणों की खान मानी जाने वाली यह प्रजाति, शोभाकारी पौधों के रूप में उद्यान और पांच सितारा होटलों में दिखाई दे रही है। एकमात्र यही वजह इसे हर प्रांत में फैलाव का रास्ता दे रहा है।

पत्तियां ही हैं फसल

2 से 3 वर्ष की उम्र होने के बाद जब पत्तियों की लंबाई 60 सेंटीमीटर हो जाती है तब इसकी कटाई, नवंबर से जून माह के बीच करनी होती है। 7 से 8 वर्ष की उम्र का सीसल 1 वर्ष में 250 से 300 पत्तियों का उत्पादन देता है। एक पत्ती से 20 से 30 ग्राम रेशा हासिल होता है।

बनती हैं लंगर की रस्सियां

सीसल की व्यावसायिक खेती केवल भारत में ही होती है। रेशा में खरीददार देशों की मांग सालाना 50 हजार टन की है लेकिन उपलब्धता केवल 12 हजार टन रेशे की ही है। इसकी पत्तियों से जो रेशा निकलता है, उससे जल जहाज के लंगर की रस्सियां बनाई जाती हैं। दूसरा उपयोग, मछली जाल निर्माण क्षेत्र करता है। इसके अलावा कुशन, ब्रश और गद्दे भी बनाए जाते है।

बेहतर परिणाम ऐसी भूमि में

देश में उड़ीसा, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्य की पथरीली और कंकरीली भूमि पर इसके पौधे लगाए गए हैं। जहां यह बेहतर परिणाम दे रहे हैं। अनुसंधान में इसमें बंजर भूमि को सुधारने में बेहद उपयोगी पाया गया है। इसलिए भूमि सुधार की योजना में इसे जगह दी जा रही है।

उच्च गुणवत्ता युक्त रेशा प्रदान करने वाली प्रजाति

आमतौर पर सीसल को शुष्क क्षेत्रों में पशुओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु खेत की मेड़ों पर लगाया जाता है। परंतु अब यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली फसल के रूप में उभर रही है। इसकी पत्तियों से उच्च गुणवत्ता युक्त मजबूत और चमकीला प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर