उत्पादक बढ़े, मांग जस का तस
भाटापारा। पानी के बाजार पर आधिपत्य को लेकर जंग के आसार बनते नजर आ रहे हैं। कीमत कम कर आगे निकलने की होड़ भले ही चालू हो चुकी हो लेकिन मौसम का पल-पल बदलता रूप इस पर लगाम लगाए हुए हैं।
पानी का सीजन जोर पकड़ चुका है। मांग भले ही रफ्तार ना पकड़ पाई हो लेकिन बाजार पर नियंत्रण और ‘हमारा ही प्रोडक्ट’ जैसी मनोवृति बनने लगी हैं। यह इसलिए क्योंकि यूनिटों की संख्या हर साल बढ़ रही है जबकि कारोबार क्षेत्र जस-का-तस है। इस बीच मौसम जैसे तेवर दिखा रहा है, उसके बाद बाजार आधा ही रह गया है।

हालात काबू से बाहर
मांग क्षेत्र बढ़ता है मौसम के तेवर से। गर्मी की शुरुआत जिस तापमान के साथ हुई थी, उसे पानी का कारोबार अनुकूल मान रहा था। समय से पहले निकली मांग को देखकर इकाइयों के बीच अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को लेकर जैसे प्रयास किए जा रहें हैं, उससे पानी के बाजार में अघोषित जंग जैसी स्थिति बनने लगी है।

तोड़ रहे कीमत
छोटी-बड़ी मिलाकर आधा दर्जन की संख्या में चल रहीं हैं पाउच, बोतल और जार में पानी बेचने वाली इकाइयां। होनी चाहिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लेकिन बाजार मूल्य से कम में उपलब्धता सुनिश्चित करने जैसे कदम अनहोनी की आशंका को बढ़ा रहे हैं।

यह कीमत
गला काट स्पर्धा के बीच इकाइयों ने कीमत पाउच में 2 रुपए, बोतल 15 रुपए और 40 रुपए तय कर दीं हैं लेकिन उपलब्धता 10 से 20% कम में की जा रही है। इससे नुकसान सभी को हो रहा है। रही बात उपभोक्ताओं की, तो वह भी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठा रहा है। कौन देगा ध्यान ?
पीछे नहीं मौसम भी
तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास जाने के बाद ही पानी के बाजार में मांग उठती है। अप्रैल के शुरुआती पखवाड़े को छोड़ दें, तो बाकी के दिन लगातार झटका देने वाले रहे। फिलहाल मौसम जैसा बना हुआ है, उससे 20 से 40% मांग टूट चुकी है।