परिवार न्यायालय के आदेश पर पति को नहीं मिली राहत

woman from motherhood cannot be given effect to. It would be inhuman. Marriage is sacrament, not contract in Hindu Law.

बिलासपुर। विवाह अनुबंध की पूर्व शर्त कि महिला मातृत्व से वंचित रहेगी, ऐसी शर्त को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है । यह अमानवीय होगा। हिंदू विधि में विवाह एक संस्कार है, न कि अनुबंध । छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह आदेश तलाक के एक मामले में आया है। कोर्ट ने पति को तलाक की डिक्री का हकदार नहीं माना है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू कानून में विवाह एक संस्कार है। इसलिए, प्रकल्पित अनुबंध जैसा कि अपीलकर्ता/ पति द्वारा कहा गया है कि दूसरी शादी इस शर्त पर की गई थी कि दूसरी शादी से उन्हें कोई बच्चा नहीं होगा, एक वैध पवित्र वचन के रूप में एक बाधा नहीं हो सकता है, अगर नहीं किया जाता है, तो यह क्रूरता का चरित्र मान लिया जाएगा। हिंदू कानून के तहत, विवाह एक अनुबंध नहीं है। इसलिए, पति द्वारा पेश किए गए कथित वादे कि उन्हें दूसरी शादी से बच्चा नहीं होगा, को परिवार के संस्कार या संस्कार पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। अगर शादी के बाद एक महिला अपने खुद के बच्चे की उम्मीद करती है, तो कथित उतावलेपन को मानवीय आचरण के खिलाफ गति में नहीं लाया जा सकता है। शादी के बाद भी संतान न होने के अनुबंध के पति द्वारा सुनाई गई भूमिका निंदनीय है। एक जन्म प्रकृति द्वारा डाली जाती है। विवाह की पूर्व शर्त के रूप में एक महिला को मातृत्व से वंचित करने को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। पति द्वारा निर्धारित की गई स्थिति केवल एक बच्चे द्वारा खुश करने के बजाय विवाहित जीवन में एक उदास माहौल जोड़ती है। इसलिए पत्नी द्वारा पति से बच्चा पैदा करने की मांग को क्रूरता नहीं कहा जा सकता।

क्या है मामला
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की मांग वाली एक याचिका सिविल सूट संख्या 98A/2015 में तीसरे अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पति ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी व न्यायमूर्ति एन.के. चंद्रवंशी की बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस पर 9 मार्च को फैसला आया है।