7 हजार लीटर हर रोज दूध उत्पादन, मांग है 15 हजार लीटर

भाटापारा। हरा चारा की कमी। पशु आहार की कीमत में 30 प्रतिशत की वृद्धि और प्रोटीन तथा कैल्शियम की मात्रा बढ़ाने वाली दवाओं पर लगती दोगुनी रकम। यह तीन ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिसने खंड क्षेत्र को कमजोर दूध उत्पादन जैसे संकट के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसी स्थिति में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर की गहरी खाई बन चुकी है।

तेज धूप, भीषण गर्मी। मैदानों से गायब हो चुकी हरियाली से जनजीवन तो हलाकान हो ही रहा है, पशुपालकों के भी छक्के छूट रहे हैं क्योंकि चारा के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। संकट कितना गहरा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोजन की मात्रा में आंशिक कटौती करने जैसे कदम उठाए जाने के संकेत मिल रहे हैं। इसका असर दूध के घटते उत्पादन के रूप में नजर आ रहा है। यही वजह है कि विवशता में दूध की कीमत बढ़ाने का फैसला लेना पड़ रहा है।

यह है बड़ी वजह

हरियाली के लिए जरूरी मौसम के विपरीत सूरज जैसा रौद्र रूप दिखा रहा है, उससे प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाली घास की जगह रूखे-सूखे मैदान नजर आ रहे हैं। हालात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि घास की खेती करने वाले किसान भी पीछे हटने लगे हैं क्योंकि भू-जल का स्तर तेजी से घट रहा है।चौतरफा मांग का दबाव

चौतरफा मांग का दबाव

दाल, चांवल और पोहा बनाने वाली खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों पर डेयरियों और मवेशी पालकों का सबसे ज्यादा दबाव देखा जा रहा है। उपलब्धता तो भरपूर है लेकिन मांग से कीमत भी बढ़ चली है। यह रिकॉर्ड मांग का ही असर है कि पशु आहार की कीमत में 15 से 20 प्रतिशत की तेजी आ चुकी है। हद तो यह है कि दो रुपए किलो जैसी कीमत पर बिकती आ रही पैरा कट्टी 5 रुपए किलो जैसी उच्चतम कीमत पर पहुंच चुकी है।

पीछे यह भी नहीं

पौष्टिक तत्वों की मात्रा बनी रहे इसके लिए डेयरियां प्रोटीन और कैल्शियम जैसी जरूरी दवाओं की खरीदी तो कर रहीं हैं लेकिन उन्हें अब दोगुनी रकम खर्च करनी पड़ रही है। दवाओं के लिए जरूरी दूसरी सामग्रियों की बढ़ चुकी कीमत, इस वृद्धि की बड़ी वजह मानी जा रही है। इसमें कैल्शियम में सर्वाधिक गर्मी का आना बताया जा रहा है। बीते बरस 90 रुपए में जिस कैल्शियम पाउडर की खरीदी की गई थी उसके लिए अब 190 रुपए देने पड़ रहे हैं।

उत्पादन और मांग

खंड क्षेत्र में प्रतिदिन 12 से 15 हजार लीटर दूध की मांग है, लेकिन उपलब्धता मात्र 7 से 8 हजार लीटर की ही है। मांग और आपूर्ति के बीच बनती अंतर की खाई को पाटने के लिए कीमत बढ़ाई लेकिन फर्क नहीं पड़ा। रही- सही कसर कुल्फी, आइसक्रीम, लस्सी और मठा बनाने की निकली मांग पूरा कर रही है। ऐसे में संकट का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।