मिठाई और टॉफियों पर भी असर

फूड कलर में किलो पीछे 100 रुपए की उछाल

बिलासपुर। पहले से ही ऊंची कीमत पर बिक रही मिठाइयां, अब और महंगी होने जा रहीं हैं। पिपरमेंट और टॉफियों के निर्माण क्षेत्र में मजबूत धमक दिखाने के बाद, यह टेबलेट और कैप्सूल बनाने वाली यूनिटों में प्रवेश कर चुका है, जहां इसकी मदद के बिना उत्पादन संभव ही नहीं है। जी हां, फूड कलर नाम है इसका, जिसमें पहली बार किलो पीछे, 140 से 200 रुपए की तेजी आई है।

महामारी के दौर में खान-पान और सेहत को लेकर जैसी जागरूकता देखने में आई है उसके बाद कारोबार का हर क्षेत्र बेहद सतर्क है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की सख्ती के बाद खान-पान से जुड़ा कारोबार मानक पर सही फूड कलर का ही उपयोग कर रहा है। ऐसे में जरूरी, ऐसी सामग्रियों का उत्पादन करने वाली यूनिटों को ऊंची कीमत पर फूड कलर की खरीदी करनी पड़ रही है। असर बहुत जल्द उपभोक्ताओं के सामने तेजी के रूप में सामने आने वाली है।

कैप्सूल, टेबलेट और सीरप

फूड कलर का सबसे ज्यादा उपयोग करने वाले मेडिकल इंडस्ट्रीज को इस समय, फूड कलर की खरीदी पर सबसे ज्यादा रकम लग रही है। कैप्सूल टेबलेट और सीरप के लिए लगने वाले फूड कलर की जो भी कीमत निर्माण इकाइयों ने दी है उसके अनुसार प्रति किलो फूड कलर की खरीदी पर 200 से 250 रुपए लग रहे हैं। इसके पहले तक इसकी कीमत 100 से 140 रुपए थी।

कन्फेक्शनरी में उबाल

फूड कलर में कन्फेक्शनरी इंडस्ट्रीज दूसरा ऐसा क्षेत्र है, जहां बड़े पैमाने पर इसकी खरीदी होती है। रंग बिरंगी टॉफियां, बिस्किट, केक, पेस्ट्री, पिज़्ज़ा, बर्गर के अलावा खान-पान से जुड़ा हर क्षेत्र फूड कलर में आए तूफान का सामना करने के लिए विवश है। कारोबारी सूत्रों की मानें तो इसमें यह तेजी आने वाले महीनों में भी बने रहने की संभावना है।

रंग बिरंगी मिठाइयां और जूस

फूड कलर के लिए मिठाई, जूस और आइसक्रीम उत्पादन इकाई, तीसरा बड़ा क्षेत्र माना जाता है। पूरे साल मांग में रहने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थ की नई और बढ़ी हुई कीमत के साथ आपके सामने हाजिर होने वाली है क्योंकि इस क्षेत्र में उपयोग हो रहे फूड कलर की प्रति किलो कीमत 200 से 220 रुपए किलो हो चुकी है। पहले यह 100 से 120 रुपए किलो थी।