प्लास्टिक, आयातित दाल सब्जी और फलों की मिठास भी होगी महंगी
बिलासपुर। पेट्रो-केमिकल्स की तेजी अब अपने दूसरे क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है। इसके असर से एडिबल और नॉन एडिबल मोम में महंगाई का ऐसा दौर आ चुका है जिसके बाद, उपयोगकर्ता उद्योगों में बनने वाली सामग्रियों की बढ़ी हुई कीमत के रूप में देखने में आएगी।
प्लास्टिक पैकिंग, केबल, मोटर केबल बनाने वाली इकाइयों को मोम की खरीदी पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं तो, एडिबल मोम का उपयोग करने वाली इकाइयों को भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। महामारी के दौर से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे औद्योगिक क्षेत्र को पहली बार एक ऐसी चीज की खरीदी महंगी पड़ रही है, जिसकी कीमत लगभग स्थिर थी। यह चीज है ‘वैक्स’ जिसे आम बोलचाल में ‘मोम’ के नाम से जाना जाता है।
ये देश, पूरी दुनिया को
खाड़ी देशों में ईरान को मोम उत्पादन क्षेत्र के रूप में दुनिया भर में पहचाना जाता है। इसके बाद चीन दूसरा ऐसा मुल्क है, जिसके पास मोम के लिए बड़े खरीददार देश हैं। इन तीनों ने मिलकर पेट्रो-केमिकल की कीमतों की दरों का निर्धारण अपने हिसाब से तय किया हुआ है। इससे बढ़ी कीमत पर सौदे और आयात शुल्क लगने के बाद देश को इसकी खरीदी बेहद ऊंची कीमत पर करनी पड़ रही है।
एडिबल, नॉन एडिबल दोनों गर्म
आयातित मोम में आई गर्मी के बाद देश की औद्योगिक इकाइयों को नॉन एडिबल मोम की खरीदी, अब 150 रुपए किलो पर करनी पड़ रही है। तेजी के पहले यह 110 रुपए किलो पर मिल रही थी। एडिबल मोम की नई दर 170 रुपए किलो पर चलने की खबर है। इसके पहले तक यह 130 रुपए किलो पर खरीदी जा रही थी। इंपोर्टेड वैक्स में आई तेजी के बाद देसी वैक्स में भी कीमत बढ़ने के संकेत हैं।
यह है मांग क्षेत्र
देश में इंपोर्टेड वैक्स की खरीदी, बड़ी मात्रा में केबल प्रोडक्शन यूनिटें करतीं हैं। इसके बाद प्लास्टिक इकाइयां मांग क्षेत्र हैं। बिजली की सामग्री निर्माण क्षेत्र भी इसकी बड़ी उपयोगकर्ता हैं। एडिबल वैक्स में पल्स याने दाल बनाने वाली यूनिटें बड़ी खरीददार बताई जाती हैं। इसके बाद फलों और सब्जियों में वैक्स कोटिंग करने वाली इकाइयां भी इसी क्षेत्र द्वारा वैक्स की खरीदी करतीं हैं। इन सभी को जैसी कीमत लग रही है, उसका असर तैयार सामग्री की बढ़ी कीमत के रूप में देखने में आने की संभावना है।