अब दिन नहीं, नग के हिसाब से भुगतान
भाटापारा। राहत की सांस ले रहे हैं रफू और पैबंद लगाने वाले कारीगर। शाम ढलने के बाद दिन भर की जो मेहनत पैसों के रूप में हाथों में आती है, तब दूसरे दिन की चिंता दूर हो जाती है। यह, वह वर्ग है जो पिछले 2 माह से रोजी- रोटी के इंतजाम में लगा हुआ है। यह पहला साल है जब मनमाफिक मेहनताना मिल रहा है।
समर्थन मूल्य पर चल रही धान की खरीदी किसानों के लिए ही नहीं, कई ऐसे क्षेत्र के लिए रोजी-रोटी का सहारा बन रही है, जो इस काम से जुड़े दीगर काम किया करते हैं। इनमें से रफू और पैबंद कारीगर भी ऐसा वर्ग है जिनकी मदद से कटे-फटे बारदाने फिर से उपयोग के लायक बनाए जाते हैं। बीते कुछ बरस भले ही संकट में बीते लेकिन चल रहा साल निश्चित ही राहत बनकर आया है, जब मजदूरी दर दोगुनी मिल रही है।
इसलिए राहत
सालों से एक ही दर पर काम कर रहे कारीगरों में खुशी इसलिए देखी जा रही है क्योंकि इस बरस बाजार में पुराने बारदानों की मांग का दबाव है। इसके अलावा होलसेल मार्केट ने भी महसूस किया कि रफू और पैबंद लगाने के काम में मेहनत कितनी ज्यादा है। यदि मजदूरी नहीं बढ़ाई गई तो बाजार की मांग पूरी कर पाना असंभव होगा। इसलिए मजदूरी दर सीधे दोगुनी कर दी गई ।दिन नहीं, नग के हिसाब से मेहनताना
नग से तय होता है मेहनताना
एक और नया बदलाव इन कारीगरों को राहत पहुंचा रहा है, वह यह कि अब प्रतिदिन नहीं, प्रति नग बारदाने के मान से भुगतान हो रहा है। इसका पहला लाभ यह हुआ कि कारीगर को अब पूरे दिन काम के लिए बने रहने से छुट्टी। भुगतान प्रति नग बारदाने की मरम्मत के आधार पर किये जाने की वजह से काम ज्यादा हो पा रहा है।
एक दिन में 100 से 150
बारदाना मरम्मत के क्षेत्र में बदलाव की जो बयार आई हुई है, उसके बाद रफू और पैबंद लगाने वाले कारीगर एक दिन में 100 से 150 बारदानों को फिर से उपयोग के लायक बना रहे हैं। यानी इतनी संख्या में रफू किए तो 200 से 300 रुपए मिल रहे हैं। पैबंद लगाने वाले कारीगरों को अपने काम के लिए 400 से 600 रुपए मिल रहे हैं। निश्चित ही यह नया बदलाव इस वर्ग को भारी राहत दे रहा है। यहां पर बता देना जरूरी होगा कि शहर में ऐसे काम को करने वालों की संख्या 150 से 200 के आसपास है।