प्रेशर में हार्वेस्टर और थ्रेशर

भाटापारा। अल्प बारिश के बाद खेती- किसानी के काम आने वाले जरूरी उपकरणों के आने वाले दिन, अंधेरे में जाते नजर आने लगे हैं। हार्वेस्टर और थ्रेशर, जैसे 2 उपकरण का नाम पहले लिया जा रहा है। स्थानीय तौर पर इन दोनों की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने वाले किसानों को दोहरी चिंता सता रही है कि कैसे किस्तें जमा की जा सकेंगी? क्योंकि फसल की वर्तमान स्थिति को संतोषजनक नहीं माना जा रहा है।

ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, रीपर और थ्रेशर ये चार ऐसे उपकरण हैं जो किसानों के लिए खेती के काम में मजबूत सहारा हैं। अल्प बारिश के बाद यह चारों उपकरण चिंता की बड़ी वजह बन रहे हैं क्योंकि फसल की स्थिति जैसी दिखाई दे रही है उसे देखते हुए काम के लिए मुश्किल से महीना भर का समय ही हाथ आएगा। बढ़ती मशीनों की संख्या से प्रतिस्पर्धा के बीच काम की तलाश में उपकरण मालिकों के पसीने छूट सकते हैं। आशंका कम कीमत में काम करने की बाध्यता जैसी स्थिति की भी है।


चिंता दोहरी

ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, रीपर और थ्रेशर मालिकों की चिंता दोगुनी होने के पीछे जो बड़ी वजह बताई जा रही है, वह यह है कि खुद की फसल भी अल्प बारिश के घेरे में है। पड़ोसी गांव के दम पर चलने वाले इन उपकरणों की किस्तें कैसे चुकाई जाएंगी ? क्योंकि कमोबेश पूरा छत्तीसगढ़ अल्प बारिश के साए में आ चुका है। इसलिए पानी का इंतजार करती फसलों की लागत निकाल पाना फिलहाल असंभव ही नजर आ रहा है।


पंजाब और हरियाणा में भी चिंत

खरीफ फसल की कटाई और मिसाई के लिए हर बरस, पंजाब और हरियाणा से भी हार्वेस्टर आते रहे हैं। आ रही खबरों के मुताबिक इस बरस छत्तीसगढ़ में बारिश की स्थिति के बाद छत्तीसगढ़ प्रवास की योजना फिलहाल रोक दी गई है। इसके बाद अब यह दोनों राज्य ऐसे प्रदेशों में नया ठिकाना बनाने के प्रयास में हैं, जहां भरपूर काम की संभावना बन सकती है।


आशंका कड़ी प्रतिस्पर्धा की

बैंकों की उदार कर्ज नीति और शासन की योजनाओं के बाद लगभग हर गांव में हार्वेस्टर की पहुंच हो चुकी है। ऐसी स्थिति में प्रतिस्पर्धा का सामना भी करना पड़ रहा है। ताजा मौसम और परिस्थितियों में यह प्रतिस्पर्धा इस बार कई मायनों में बड़ी हो सकती है क्योंकि काम की तलाश में प्रति घंटा या प्रति एकड़ किराया कम होने के प्रबल आसार हैं।