चोकर चुस्त, पैरा बेलगाम
भाटापारा। 35 हजार लीटर दूध उत्पादन वाला अपना ब्लॉक, इस समय कम उत्पादन और चारा की बेलगाम होती कीमत जैसी प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहा है। बाजार और घरेलू मांग तो है लेकिन अब अनुकूल स्थितियों के लिए कम से कम नवंबर तक इंतजार करना होगा।
डेयरी संचालक पूरी तरह संकट के घेरे में फंस चुके हैं। एक तरफ चारा की रोज बढ़त ले रही कीमत हलकान कर रही है तो, दूसरी तरफ कमजोर होता दूध उत्पादन संकट को बढ़ा रहा है। उपाय हाथ में था, कीमत और आहार की मात्रा बढ़ाने का, लेकिन दोनों ही फैसले व्यावहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं माने गए, लिहाजा अब केवल अनुकूल समय का इंतजार है, जो तीन माह बाद ही आएगा।
पैरा कट्टी में गर्मी
पशु आहार में आसान उपलब्धता वाली सामग्री पैरा कट्टी अव्वल नंबर पर रखी जा रही है। माह भर पहले तक एक रुपए 50 पैसे किलो पर मिल रहा पैरा कट्टी, अब तीन रुपए किलो पर पहुंच गया है। सरसों और बिनौला खली में 25% तक की तेजी आ गई है। गेहूं चोकर और कोढ़ा की कीमत, खरीदी क्षमता से बाहर जाती नजर आने लगी है। लगभग सभी पशु आहार में कीमत इसी तरह बढ़ चुकी है।
मौसम की दगाबाजी
डेयरी फार्म संचालकों को उम्मीद थी कि मौसम का साथ मिलेगा लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। भरपूर बारिश के नहीं होने से हरा चारा के मैदान, हरियाली से दूर हैं। लिहाजा मवेशियों को फॉर्म पर ही उपलब्ध होने वाले चारा पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। जहां पहले से ही चारा खरीदी की मात्रा घटाई जा चुकी है। ऐसे में दूध का भरपूर उत्पादन, सपने देखने जैसा ही है।
यह भी बड़ी वजह
मानसून की दस्तक और फिर ब्रेक। यह स्थिति मच्छर और मक्खियों के लिए पूरी तरह अनुकूल है। इनकी बढ़ती संख्या मवेशियों को परेशान कर रही है। स्वच्छता का ध्यान तो रखा जा रहा है लेकिन सारे उपाय ढेर होते जा रहे हैं। इसका असर कम होते दूध उत्पादन के रूप में सामने आ रहा है क्योंकि आराम का समय नहीं मिल रहा है।
फैसला जो पड़ रहा भारी
फैसला जो पड़ रहा भारी
लॉकडाउन के दूसरे दौर में बाजार की अनुपलब्धता के बाद दूध उत्पादन घटाने का फैसला अब गलत लगने लगा है, हालांकि पशुपालन विभाग ने इस फैसले को बेहद घातक बताया था लेकिन सलाह नहीं मानी। अब कहा जा रहा है कि सलाह मान ली होती तो यह दिन नहीं आते और बाजार की भरपूर मांग ना केवल पूरी की जा सकती बल्कि उत्पादन की गति भी सामान्य बनी रहती।