भाटापारा। अतिरिक्त पाईप डाले जाने के बाद भी पर्याप्त पानी नहीं आता देखकर बोर की गहराई बढ़ाने का काम कर रहीं हैं डेयरियां, तो ग्वाले भी इसी तरह की कवायद करने में जुटे हुए हैं ताकि भीषण गर्मी में मवेशियों की प्यास बुझाई जा सके।
पोहा और चावल मिलों के बाद अब जल संकट ने दूध उत्पादक क्षेत्र में दस्तक दे दी है। हर मुमकिन कोशिश में मिल रही असफलता को देखकर अब नया बोर खनन जैसे अंतिम विकल्प पर विचार कर रहे इस क्षेत्र के सामने बड़ी बाधा बन रहा है यह सवाल कि ‘फिर भी नहीं मिला पानी तो…?

माह भर पहले दस्तक
बीते 2 साल से भूजल भंडार कम होता जा रहा है। इस बार यह संकट इसलिए चिंताजनक माना जा रहा है क्योंकि अप्रैल मध्य में आने वाले संकट ने मार्च में ही दस्तक दे दी है। इसमें और विस्तार की आशंका इसलिए बन रही है क्योंकि भूजल का भंडार लगातार घट रहा है। इसलिए दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों ने पास-पड़ोस की जल उपलब्धता वालों से संपर्क बढ़ाने चालू कर दिए हैं।काम नहीं आ रहे यह उपाय

काम नहीं आ रहे यह उपाय
बोर की गहराई तो पर्याप्त है लेकिन जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिलता देखकर पाइप की संख्या बढ़ाने की कोशिश की लेकिन काम नहीं आ रहे यह उपाय। लिहाजा बोर की गहराई बढ़ाने जैसी कोशिशें की जा रहीं हैं। इसके बावजूद उपलब्धता, ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहीं है। इसलिए अन्य विकल्प की खोज में है डेयरियां और ग्वाले ताकि संकट के दिनों में मवेशियों की प्यास बुझाई जा सके।

नहीं मिला पानी तो…?
नया बोर खनन जैसे उपाय पर विचार तो किया जा रहा है लेकिन यक्ष प्रश्न यह कि ज्यादा गहराई पर जाने के बावजूद भी पर्याप्त मात्रा में भूजल भंडार नहीं मिला तो कैसे हल की जा सकेगी यह किल्लत ? इसके अलावा चिंता की वजह वे जलाशय, वे तालाब और कुंए भी बन रहे हैं, जिनका पानी भी तेजी से कम हो रहा है। जो आपातकालीन स्थितियों में साथ देते थे। मालूम हो कि शहर में आधा दर्जन से ज्यादा डेयरियां संकट के घेरे में आ चुकीं हैं।