बलौदाबाजार। आहट जल संकट की। चौकन्नी हो चलीं हैं उसना चावल बनाने वाली ईकाइयां। उपलब्ध सीमित उपाय के बीच ऐसे विकल्प की तलाश है, जो स्थाई समाधान बन सके।
पोहा बनाने वाली ईकाइयों के बाद अब उसना चावल उत्पादन करने वाली ईकाइयों के द्वार पर दस्तक दे रहा है जल संकट। पोहा मिलों की तरह यहां भी जल की उपलब्धता तेजी से कम हो रही है। नियमित उत्पादन में बाधा नहीं आने पाए इसलिए ईकाइयों ने जल प्रबंधन के सुझाए गए उपायों पर ध्यान देना चालू कर दिया है।

सतर्क हैं इसलिए
औसत जरूरत लगभग 8000 से 10000 लीटर पानी रोजाना। उसना चावल बनाने वाली ईकाइयों की इस जरूरत में अब लगभग 20 से 25 फीसदी की कमी महसूस की जा रही है क्योंकि भूजल का भंडार घट रहा है। सीमित विकल्पों के बीच ऐसे उपाय की खोज है, जो स्थाई समाधान की राह खोलते हैं।
पहला ध्यान इस पर
वाटर हार्वेस्टिंग और आपातकालीन जल भंडार जैसे उपायों के बीच उसना चावल उत्पादन करने वाली ईकाइयों का ध्यान जल प्रबंधन पर तो है ही, साथ ही पुनर्चक्रण जैसे सफल उपाय पर भी है। जिले की कुछ ईकाइयां यह काम कर रहीं हैं। परिणाम उत्साहजनक मिल रहे हैं लिहाजा इस पर भी ज्यादा ध्यान है क्योंकि इस विधि में जल अपव्यय जैसी स्थिति नहीं आती।

प्रतीक्षा गंगरेल के पानी की
उसना चावल उत्पादन करने वाली ईकाइयों को प्रतीक्षा है गंगरेल जलाशय के गेट खुलने की। नहरों से आने वाला पानी तालाबों में पहुंचेगा। इससे गिरते भूजल को रोकने में मदद मिलेगी। ग्रामीण आबादी के साथ राहत ऐसी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को भी मिलेगा, जिनके उत्पादन में पानी की अहम भूमिका होती है।
भूमिगत जल भंडार में आ रही कमी से उसना चावल बनाने वाली ईकाइयों का संचालन कठिन हो रहा है। इसलिए हर ऐसे उपाय पर विचार कर रहे हैं, जिनसे समस्या का समाधान किया जा सकता है।
– देवेंद्र भृगु, पूर्व अध्यक्ष, जिला राईस मिल एसोसिएशन, बलौदा बाजार-भाटापारा