धारणा बेहतर आवक की
भाटापारा। सांवा 300 रुपए क्विंटल। हताश नहीं है बोरसी का किसान इमरान क्योंकि यह भाव भी बेहतर भविष्य का संकेत दे रहा है। बेहतर इसलिए भी क्योंकि उपयोग क्षेत्र बढ़त लेता नजर आ रहा है।
खरपतवार ही माना जाता रहा है सांवा को लेकिन इसके बीज भी अब मांगे जाने लगे हैं। नवाचार और प्रयोगधार्मी कारोबारियों का शहर माना जाता है भाटापारा को। परंपरा आगे बढ़ा रहे युवा कारोबारियों ने सांवा की खरीदी को लेकर जैसा रुझान दिखाया हुआ है, उसने इमरान जैसे युवा किसान का उत्साह दोगुना कर दिया है।

इसलिए 300 रुपए क्विंटल
बीते सत्र की उपज थी, सप्ताहांत में प्रांगण में पहुंचने वाली सांवा सीड। भंडारण के उचित उपाय नहीं किए गए थे। इसलिए धूल की मात्रा ज्यादा थी। इमरान ने ध्यान नहीं दिया। बगैर साफ किया हुआ सांवा पहली नजर में ही धूलयुक्त नजर आ रहा था। इसलिए 300 रुपए क्विंटल पर नीलाम हुआ। जबकि पिछले पखवाड़े की आवक को 1100 रुपए क्विंटल जैसी कीमत मिली थी।

अच्छे भाव के लिए अच्छी सफाई
सांवा सीड की आवक और लिवाली में बेहतर भविष्य देख रहे हैं सचिव सी एल ध्रुव। उनका कहना है कि अच्छी कीमत के लिए किसानों को उन्नत कृषि तकनीक की मदद लेनी होगी। जो सांवा पहुंची थी, उसकी गुणवत्ता सही थी लेकिन धूल ज्यादा थी इसलिए आशा के अनुरूप भाव नहीं मिला। ऐसे ही विचार मंडी अभिकर्ता संघ के अध्यक्ष राजेश तिवारी के भी हैं। उनका कहना है कि स्वच्छता को लेकर सतर्कता जरूरी है क्योंकि यह स्थिति कीमत निर्धारण का मजबूत आधार बनती है।

लिटिल मिलेट के ग्रेड में
सांवा के चावल में फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस होता है। सेवन से वजन घटाने में मदद मिलती है। लो-ग्लाईसेमिक इंडेक्स की वजह से इसे मधुमेह रोगियों के लिए वरदान माना गया है। चावल से खिचड़ी और खीर तो बनाए ही जा सकते हैं। आटा और उपमा भी बनाया जाना संभव है।