प्रजाति विशेष वृक्षों में बदलाव पर वानिकी वैज्ञानिकों की नजर

 

बिलासपुर।  ना बादल। ना बारिश। तेज धूप। फिर भी कुछ खास प्रजाति के वृक्ष की पत्तियों से पानी टपकता है। स्पष्ट संकेत है कि संबंधित वृक्ष ने आवश्यक से अधिक मात्रा में पानी का रसारोहण किया है। अब वह अतिरिक्त मात्रा को स्वमेव निकाल रहा है।

सामान्यतः वसंत ऋतु के दिनों में देखा जाने वाला यह दृश्य, समय से पहले देखा जा रहा है। कुछ प्रजाति विशेष में आ रहे ऐसे बदलाव पर नजर रख रहे वानिकी वैज्ञानिकों का स्पष्ट तौर पर यह मानना है कि इस वर्ष भीषण गर्मी पड़ी। भूजल स्तर अपेक्षा से अधिक नीचे चला गया। लिहाजा मानसून के पहले दौर में पेड़ों ने भरपूर मात्रा में रसारोहण किया। यह अब पत्तियों से पानी की गिरती बूंदों के रूप में सामने आ रहा है।

वृक्ष ऐसे बुझाते हैं प्यास

वानिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सर्व विदित है कि वृक्ष अपनी जड़ों में संग्रहित पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत जड़ों से तने और फिर पत्तियों तक पानी पहुंचता है। यह इसलिए क्योंकि वाष्पोत्सर्जन के दिनों में पानी की कमी को स्वाभाविक रूप से पूरा किया जा सके। यह क्रिया, रस के ऊपर चढ़ने का मार्ग जाइलम के नाम से पहचानी जाती है।

इसलिए पत्तियों से पानी की बूंद

पत्तियों से पानी की बूंदों का टपकना। वह भी तब, जब ना बादल, ना बारिश। तेज धूप में ऐसा होता देखा जाना कौतूहल की वजह बनती है लेकिन यह इसलिए क्योंकि संबंधित वृक्ष ने आवश्यकता से अधिक मात्रा में पानी अवशोषित की, जाइलम कोशिका की मदद से। यह परिवर्तन पत्तियों से पानी की टपकती बूंद के रूप में सामने है। इसे रस का आरोहण कहा जाता है।

पत्तियों एवं तने से जल स्राव प्राकृतिक घटना

पौधे की जड़ें मिट्टी से नमी को अवशोषित करती है। इसे पौधे के पानी ले जाने वाले ऊतक ऊपर धकेलते हैं, जब तक की यह पत्तियों तक नहीं पहुंच जाती। वर्षा ऋतु में वायुमंडल में उपस्थित उच्च आर्द्रता प्राकृतिक वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया को बाधित कर रही है। इसलिए पत्तियों के अंदर के पानी को जाने के लिए जगह नहीं मिलने के कारण वह पानी के बूंद के रूप में पत्तियों एवं तनों से निकलता हैं।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर