चाहिए 25 डिग्री,मिल रहा 35 डिग्री सेल्सियस
चिंता में वानिकी वैज्ञानिक
सतीश अग्रवाल
बिलासपुर। चाहिए 25 डिग्री सेल्सियस। मिल रहा है 32 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान। ऐसे में परिपक्वता अवधि से पहले ही गिर रहे हैं बादाम। फलों की स्थिति को देखते हुए वानिकी वैज्ञानिकों ने सलाह जारी की है कि सिंचाई मात्रा बढ़ाएं। तब ही तैयार फल बचे रहेंगे।
निम्न तापमान में बेहतर परिणाम देने वाला बादाम, बढ़ते तापमान की वजह से संकट में है। शासकीय योजनाएं जिस गति से किसानों तक पहुंची, उसी गति से रोपण का काम भी हुआ लेकिन बीते दो वर्षों से परिपक्व वृक्ष, जिस तरह बढ़ते तापमान में झुलस रहे हैं, उसका परिणाम समय के पहले गिरते फलों के रूप में देखा जा रहा है।

10 डिग्री सेल्सियस ज्यादा
बादाम के लिए 07 डिग्री से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान को आदर्श माना गया है लेकिन ताजा परिस्थितियों में तापमान का स्तर 35 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचा हुआ है। ऐसे में तैयार होते फल, उम्र के पहले ही गिरने लगे हैं। यह स्थिति उन किसानों के लिए बेहद नुकसान पहुंचाने वाली मानी जा रही है जिन्होंने इसकी खेती की हुई है।

काम की नहीं उन्नत प्रजाति
शासकीय योजनाएं, खेती में तकनीक का बढ़ता उपयोग और उन्नत प्रजाति के बीज। इन सभी ने मिलकर बादाम की खेती का रकबा तो बढ़ा दिया लेकिन प्रकृति के बदलते रूप के सामने यह सारी कोशिश, मेहनत पर पानी फेर देने वाली मानी जा रही है क्योंकि तैयार हो रहे फल, परिपक्व होने के पहले ही गिरने लगे हैं।

संकट इन क्षेत्रों में ज्यादा
प्रदेश के पर्वतीय इलाके जैसे बस्तर, सरगुजा, जशपुर और रायगढ़ क्षेत्र में बड़ी संख्या में बादाम के वृक्ष तैयार किए गए हैं। फसल भी बेहतर आती रही है लेकिन मार्च महीने के शुरुआती दिनों में तापमान ने जैसी बढ़त ली, वह अभी भी बढ़ ही रहा है। ऐसे में यहां के बादाम की खेती करने वाले किसान चिंता में हैं अपरिपक्व फलों को गिरते देखकर।

बचाव का एक ही उपाय
बढ़ते हुए तापमान और परिपक्वता के पूर्व गिरते फलों को देखते हुए वानिकी वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि सिंचाई की मात्रा बढ़ाएं ताकि नमी की मानक मात्रा बनी रहे। इससे गिर रहे फलों की संख्या काफी हद तक कम की जा सकेगी। इसके अलावा वृक्षों के आसपास सब्जी की फसल का लिया जाना भी दूसरा बेहतर उपाय होगा।

जलवायु एक निर्धारक कारक
बादाम के पेड़ के विकास के लिए जलवायु एक निर्धारक कारक है। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन सबसे उभरती पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है, जिसमें बढ़ते वैश्विक तापमान, वर्षा व्यवस्था में बदलाव और चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता शामिल है। अपेक्षाकृत सूखा और गर्मी प्रतिरोधी होने के बावजूद यह प्रजाति जलवायु परिवर्तन के प्रति भी संवेदनशील है, विशेष रूप से इसका उत्पादन, जो मिट्टी में पानी की मात्रा और हवा के तापमान पर अत्यधिक निर्भर है। बढ़ते तापमान एवं वर्षा में कमी इसकी वृद्धि और शारीरिक विकास को प्रभावित कर रही है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर