आवक शून्य, संकट में किसान और श्रमिक

इकाइयों का संचालन हुआ कठिन

भाटापारा। सूना प्रांगण। सूने शेड। ठंडा कारोबार। यह दृश्य है शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली कृषि उपज मंडी की। मंडी पर आधारित खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां संचालन में हैं तो सही लेकिन अंतरप्रांतीय कारोबार पूरी तरह बंद हो चुका है लिहाजा उत्पादन में कमी किए जाने के संकेत मिल रहे हैं।

ड्राइवरों की हड़ताल का असर अब विस्तार लेता नजर आ रहा है। अवकाश के दिनों में भी गुलजार रहने वाला कृषि उपज मंडी प्रांगण, पिछले दो दिन से सुनसान और वीरान हो चला है। शनिवार देर शाम तक आई उपज और रविवार को पहुंची ट्रकों की कृषि उपज से सोमवार का कामकाज तो किसी तरह निपटा लेकिन मंगलवार को गाड़ियां नहीं आई। इससे कामकाज लगभग ठप्प रहा।

शून्य मंगलवार

शनिवार और रविवार को जो उपज मंडी प्रांगण पहुंची, उससे जैसे-तैसे करके खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश की गई लेकिन मांग के अनुरूप उपलब्धता नहीं थी। मंगलवार की सुबह तो, मानो कर्फ्यू जैसा नजारा दिखाई दिया, लिहाजा शेड के नीचे रखी उपज से जरूरतें पूरी करने के प्रयास किए गए लेकिन असफल ही रही यह कवायद। इसलिए वापस लौटना पड़ा खरीददारों को।

रास्ते इनके भी बंद

आपातकालीन भंडार का उपयोग तो कर रहीं हैं इकाइयां लेकिन बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि तैयार खाद्य सामग्री उपभोक्ता मांग वाले क्षेत्रों तक कैसे पहुंचाई जाए? क्योंकि इसके लिए भी ट्रकों की ज़रूरतें पड़ती है। ऐसे में पोहा और चावल का अंतरप्रांतीय कारोबार बंद होने लगा है। दलहन बाजार के लिए भी ऐसी परेशानी महसूस की जा रही है।

परेशान यह भी

जरूरत है पैसों की क्योंकि रबी फसल की तैयारी करनी है। घरेलू आवश्यकताओं के लिए भी रकम चाहिए। इस सोच के साथ कृषि उपज लेकर आने वाले किसान भी परेशान होने लगे हैं क्योंकि गांव से मंडी पहुंचने वाली गाड़ियों के टैंक खाली हो चुके हैं। मंडी के दम पर चलने वाले होटल, ढाबे, टी-कॉर्नर और किराना दुकानों में भी सन्नाटा पसरने लगा है।

By MIG