हर हिस्सा है अनमोल
बिलासपुर। बेहद अनोखा इसलिए है क्योंकि पूरे साल, फलता और फूलता है। औषधीय महत्व इसी बात से जाना जा सकता है कि आक का हर हिस्सा, किसी-ना-किसी शारीरिक व्याधि को दूर करता है। बेहद दिलचस्प इसलिए भी है क्योंकि यह अपने आप तैयार होता है।
महीना है सावन का। दिन हैं आक के फूल और पत्तियों के, क्योंकि शिवालयों में चढ़ाई जा रही बेल पत्तियों के साथ यह भी अभिषेक में अपनी जगह बना रहे हैं। फूलों की बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आक की झाड़ियों में पूरे साल पुष्पन की प्रक्रिया चलती रहती है।

इसलिए अपने आप
पूरे साल फलने-फूलने वाला आक, सर्दियों के मौसम में विशेष बढ़वार लेता है। शीत ऋतु की विदाई की बेला में लगने वाले फल अपने आप बीज छोड़ते हैं, जो इतने हल्के होते हैं कि हवा के बहाव में फैलते हैं। स्थिर वायु के बीच गिरने वाले बीज, से नए पौधे तैयार होते हैं।

होतीं हैं चार प्रजातियां
सफेद, लाल और रक्तार्क जैसी प्रजातियां हैं आक की लेकिन चौथी प्रजाति पर्वतीय आक सबसे ज्यादा विषैली होती है। इसके बावजूद यह सभी प्रजातियां सावन के महीने में शिवालयों में अर्पण के काम आती हैं। पूरे साल पुष्पन और आसान उपलब्धता के बावजूद फूल बाजार में यह बेचा और खरीदा जाता है।

हर अंग का औषधीय महत्व
5 से 8 फीट की अधिकतम ऊंचाई वाले आक की झाड़ियों की पत्तियों, फूल, फल, बीज, तना और जड़ों में जो औषधिय गुण मिले हैं, उसकी मदद से चोट, मोच, त्वचा रोग, सूजन, वात और अतिसार जैसी बीमारियां दूर की जा सकती हैं। श्वेत कुष्ठ को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है। बताते चलें कि आक, समान रूप से सभी जगह आसानी से मिलता है।

हर हिस्सा उपयोगी
आक एक औषधीय पौधा है। इसे मदार, आक,अर्क और अकौआ भी कहते हैं। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं। आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊंची भूमि में सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इसके उपयोग के पूर्व चिकित्सीय सलाह अनिवार्य है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज आफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर