लड्डु, टाॅफी से लेकर त्वचा रोग, दांत दर्द निवारक, सौंदर्य प्रसाधन में गोंद का हो रहा उपयोग



बिलासपुर। जो बोए पेड़ बबूल का, वो गोंद वहीं से पाए। मूल कहावत यह है कि जो बोए पेड़ बबूल का, तो आम कहां से पाए…। इससे हटकर, इतर सच्चाई यह है कि अब बबूल का पेड़ ना केवल बाजार की सेहत बना रहा है बल्कि इसकी राल से खाद्य और अखाद्य सामग्री बनाने वाली इंडस्ट्रीज को भी जीवन मिल रहा है।

वानिकी वृक्षों की प्रजातियों में बबूल की अहमियत निरंतर बढ़ रही है। बीज के बाद इससे निकलने वाला गोंद अपने परंपरागत उपयोग क्षेत्र से बाहर निकल कर उस जगह पहचान और अनिवार्यता बना रहा है, जहां जरूरत कभी देखी नहीं गई। यही वजह है कि रेगिस्तानी क्षेत्र में इसके पेड़ व्यवसायिक जगह ले रहे हैं। दिलचस्प यह है कि बबूल शायद एकमात्र ऐसा वृक्ष होगा, जिसे सबसे कम देखरेख की जरूरत पड़ती है।

कहावत से इतर सच्चाई

जो बोए पेड़ बबूल का,वो आम कहां से पाए ? सदियों से सुनी जा रही इस कहावत के उलट, सच्चाई यह है कि अब यह बेहद काम का माना जा चुका है। राल याने गोंद इसका सबसे अहम हिस्सा है। अनुसंधान में गोंद में जो गुण मिले हैं, उस के दम पर खाद्य एवं अखाद्य दोनों प्रकार की सामग्री बनाई जा सकती है।

गोंद से यह सामग्री

लड्डू हमेशा से हर घर में बनते रहें हैं। अब इसकी मदद से शीतल पेय पदार्थ भी बनाया जा रहा है। डेयरी उत्पादन के लिए तो अहम ही है। अखाद्य सामग्रियों में बबूल गोंद की खरीदी, अब सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली यूनिटें करने लगीं हैं। त्वचा रोग और दांत दर्द से छुटकारा दिलाने वाली दवाईयां भी इसकी ही मदद से बन रहीं हैं।

मुकाबला इनसे

बबूल गोंद को धावड़ा, कुल्लू और पलाश के गोंद से हमेशा से मुकाबला करना पड़ता है। इसके बावजूद बबूल हमेशा से आगे रहता आया है। यह इसलिए क्योंकि उपयोग और उपभोग क्षेत्र में इसे चौतरफा स्वीकार्यता मिल चुकी है। बढ़त के प्रबल आसार इसलिए बनते नजर आते हैं क्योंकि स्याही बनाने वाली ईकाइयां भी खरीदी कर रहीं हैं।

‘हीलिंग ट्री’ है बबूल

बबूल का वृक्ष ‘हीलिंग ट्री’ के नाम से मशहूर है। औषधीय गुणों से भरपूर बबूल के पेड़ से निकलने वाला गोंद कई बीमारी की असरदार दवा है। बबूल का गोंद पोषक तत्वों का खजाना है जिससे वजन को नियंत्रित करने के साथ ही पाचन को भी ठीक रखा जा सकता है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज आफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर